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साहित्य-समीक्षा
1. पुरुषार्थं सिद्ध्युपाय - संदर्शिका - मूल प्रणेता - श्रीमद् भगवदमृत चन्द्राचार्य | अनुवादक एवं सम्पादक श्री नाथूराम डोंगरीय जैन, न्यायतीर्थ, शास्त्री, इन्दौर । प्रकाशक, संयोजक एवं भेंटकर्ता - कमलकुमार, (डॉ.) कैलाशचन्द्र, रमेशचन्द्र सेठी, राजसदन, 199 जवाहर मार्ग इन्दौर । प्राकार - 18 " ×22" /8 "। पृष्ठ संख्या-144 | न्यौछावर - धर्मप्रचारार्थं भेंट |
2.
वर्तमान श्रावकाचारों में प्रस्तुत ग्रंथ का प्रतिपाद्य विषय के प्रतिपादन एवं शैली की दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण है । इसमें श्रावक के प्रचार का निश्चय और व्यवहार दोनों ही दृष्टियों से बड़ा सुन्दर विवेचन किया गया है। समीक्ष्य पुस्तक इसी का सुन्दर, सरल और सरस हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद है जो संस्कृत भाषा से अनभिज्ञ स्वाध्याय प्रेमियों के लिए ग्रन्थ के हार्द को समझने में बड़ा सहायक हो सकता है । छपाई -सफाई भी सुन्दर एवं कलापूर्ण है ।
प्रकाशक - श्री पद्मचन्द्र शास्त्री, नई 21, दरियागंज, नई दिल्ली - 2 | । मूल्य- दो रुपया मात्र ।
मूल जैन संस्कृति : अपरिग्रह - लेखक एवं दिल्ली | प्राप्ति-स्थान- वीर सेवा मन्दिर, झाकार—18" × 22"/8 " | पृष्ठ संख्या - 32
अहिंसा, अनेकान्त र अपरिग्रह ये तीनों जैन संस्कृति के प्राधार स्तम्भ हैं। बिना इनको हृदयंगम किये न तो जैन संस्कृति को समझा जा सकता है और न जैनधर्म को जीवन में उतारा हो जा सकता है । लेखक ने जैन संस्कृति को अनादिकालीन बताते हुए वीतरागता का श्रात्मकल्याण के लिए साधन और साध्य दोनों रूपों से विवेचन किया है। यह वीतरागता अपरिग्रह का पालन किये बिना प्राप्य है। इसमें कथ्य की दृष्टि से नयापन है । पुस्तक पठनीय, मननीय तथा संग्रहणीय है ।
3. जैनदर्शन में उपासना एवं स्याद्वाद - लेखक - श्री नाथूराम डोंगरीय जैन न्यायतीर्थ, शास्त्री, इन्दौर । प्रकाशक- जैन साहित्य प्रकाशन, 5 / 1 तम्बोली बाखल, इन्दौर-2 | नाकार-20” X 30"/16 " । पृष्ठ संख्या - 64 मूल्य - जिनशासन प्रभावनार्थं सप्रेम भेंट |
प्रस्तुत पुस्तिका में दो निबन्ध समाविष्ट हैं - 1. जैनदर्शन में उपासना तथा 2. जनदर्शन में स्याद्वाद I प्रथम निबन्ध में अहं भक्ति का महत्त्व व उसके स्वरूप पर विचार करते हुए भक्ति की श्रावश्यकता पर अत्यधिक बल दिया गया है साथ ही भक्ति में श्राई विकृतियों को अस्वीकार किया गया है । द्वितीय निबन्ध में स्याद्वाद के स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए साधु-सन्तों, समाज के नेताओं, विद्वानों एवं श्रीमानों से अपेक्षा की गई है कि वे स्याद्वाद के स्वरूप को समझकर आपसी मतभेद भुलाकर ऐक्य की ओर अग्रसर होंगे ।