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श्रावक के अष्ट मूलगुरण
(धनपाल की दृष्टि में)
महु मज्जु मंसु पंचुवराई,
खजंति न जम्मंतरसयाई। विज्जति न कहुवि हियत्तणेणेण,
पहु चितिजति वि नियमणेण । अन्नहो वि प्रसंतहो अहियदोसु, 1. न करिव्वउ मरिण महिलासु तोसु । ते प्रठ्ठ मूलगुण एम होंति,
विणु तेहि पन्नउत्तर न ठंति ।
भाषान्तर-(श्रावक द्वारा) मधु, मद्य, मांस और पांच उदम्बर फल (वड़, पीपल, पाकर फल, कठुम्बर और मंजीर) जन्म-जन्मान्तर में भी नहीं खाये जाते और न किसी को भी हितपने से दिये जाते हैं; (उसके द्वारा तो) अपने मन से प्रभु का चिन्तवन किया जाता है।
दूसरे के प्रशांत होने पर भी उसकी इच्छापूर्ति का अहितकारी दोष मन से भी नहीं करना चाहिए। ये पाठ मूलगुण इस प्रकार के होते हैं । बिना इनके अन्य उत्तरगुण नहीं होते ।
भवि. 17.8.1-4