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जनविद्या
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- अनुप्रेक्षानों का चिन्तवन किये बिना चित्त का समाधान कठिन है। - मनुष्य का यह जीवन क्षणभर में नष्ट हो जाता है।
संसार में उत्पन्न सभी वस्तुएं क्षण-मंगुर हैं । - संसार क्षणभंगुर है। - संसार बिजली के समान क्षणभंगुर तथा सारहीन है । - इस संसार में मजबूत जड़ किसी की नहीं है। - संसार में कोई किसी का मित्र नहीं है। - प्राणियों को रोग मौर मरण से बचाने के लिए कोई भी शरण नहीं है । - संसार में कुछ भी सार नहीं है । - यह संसार दुःख का स्थान है । - संसार प्रसार है। - वस्तुतः इस प्रसार संसार में लेशमात्र भी सुख दुर्लभ है। - यह संसार प्रसार और प्रत्यन्त दुःख से भरा है। - प्राणी संसाररूपी सागर में बहुत दुःख पाते हैं। - दुःख ही संसार का दूसरा नाम है। – जीव को संसार में अकेले ही प्रमण करना पड़ता है। - यह जीव अकेला ही जन्मता और अकेला ही मरता है ।