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बनविद्या
-यह अनादि संसार सत्पुरुषों की प्रीति के लिए नहीं हो सकता । -इस लोक में सब दुःख ही दुःख है, सुख तो कल्पनामात्र है।
-समय का ज्ञान सब नयों (दृष्टियों) से श्रेष्ठ है । --अवसर को जाननेवाला ही निश्चय से यथायोग्य कार्य करता है ।
-मनुष्यों की प्रवस्थानों का परिवर्तित होना सामान्य बात है।
-अमृत की बेल से विष की उत्पत्ति नहीं हो सकती। -कंठ में शिला बांधकर भुजाओं से तेरा नहीं जा सकता। -समुद्र के रत्नों की उत्पत्ति सरोवर से नहीं हो सकती । -बालू के पेलने से लेशमात्र भी तेल नहीं निकल सकता ।
-पानी के मथने से मक्खन की प्राप्ति नहीं हो सकती।
जल से प्रात्मा की शुद्धि नहीं होती।
--प्रात्मलाभ से कोई बड़ा ज्ञान नहीं है । --प्रात्मलाभ से बड़ा कोई सुख नहीं है । -प्रात्मलाभ से बड़ा कोई ध्यान नहीं है। -प्रात्मलाभ से बड़ा कोई पद नहीं है । -अपने चित्स्वरूप के साथ बंधुता करो।