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जैन विद्या
साथ ही अडिल्ल छंद (1.12-16 संधि 2 सम्पूर्ण) का भी प्रयोग हुआ है । आठवीं संधि का तेरहवां कडवक सिंहावलोकन छंद में हुआ है ।
एक कडवक कितने पदों का हो, इसका निश्चित नियम नहीं है । साधारणतः एक कडवक में सोलह पंक्तियों होनी चाहिये । इस नियम का समान रूप से सबके द्वारा पालन नहीं हुआ है । भविसयत्तकहा में एक संधि में सामान्यतः ग्यारह से लेकर छब्बीस तक कडवक हैं। कम से कम दस तथा अधिक से अधिक तीस पंक्तियां एक कडवक में प्रयुक्त हैं । अन्त में घत्ता या ध्र बैंक का विधान है। ध्र वक का अर्थ है ध्रुव अर्थात् निश्चित । छन्द के अन्त में घत्ता का रहना ध्र व अर्थात् निश्चित है अतः इसे ध्रुवक कहते हैं । यह घत्ता दोहे या उसके आकार का कोई. छंद होता है । 'मानस' के अयोध्याकांड में पाठ चौपाइयों के बाद दोहे का घत्ता देने का विधान है। यह इसी परम्परा का रूप है।
'भविसयत्तकहा' के वस्तु-वर्णन में महाकाव्योचित उदात्तता है। तिलकद्वीप की निर्जनता के बीच एकाकी भ्रमण करते हुए भविष्यदत्त की मानसिक दशा का जैसा सूक्ष्म विवेचन कवि ने किया है वह विरल है। प्राकृतिक दृश्यों एवं युद्ध तथा प्रेम का जैसा अलंकृत वर्णन इस काव्य में है वह एक महाकाव्य में ही सम्भव है। मुख्य कथानक के भीतर से ही अवान्तर कथाओं की योजना की गयी है। ये अवान्तर कथाएं कुभी. कभी पूर्वभव के वर्णन के रूप में हैं। जैसे-मुनि विमलबुद्धि के द्वारा भविष्यदत्त के भवान्तर की बातें बतलाना । कथा में श्रृंगार एवं वीर रस का परिपाक है किन्तु अन्त शान्त-रस-परक ही हुआ है।
संस्कृत के महाकाव्यों में यह प्रावश्यक माना गया है कि उसका नायक धीरोदात्त, धीरललित या घीरप्रशान्त में से कोई एक हो तथा वह देवता, उच्चकुलसम्भूत राजपुत्र या क्षत्रिय हो । जैन कवियों ने अपने प्रबन्ध-काव्यों में इस नियम का तिरस्कार किया है। "भविसयत्तकहा" का नायक वणिक-पुत्र है किन्तु सदाचार के आचरण के कारण तथा किसी व्रत की साधना के फलस्वरूप लौकिक समृद्धि के साथ साथ पारलौकिक समृद्धि मुक्ति की प्राप्ति करता है। जहां तक महदुद्देश्य तथा महती प्रेरणा का सम्बन्ध है जैन कवि पूर्वजन्म के शुभ कर्मों तथा वर्तमान जीवन के सत्याचरण द्वारा सार्वकालिक जीवन-मूल्यों की स्थापना कर लोक-मंगल का मार्ग प्रशस्त करता है । अध्यात्म की चर्चा, भोगों की निस्सारता, धार्मिक चेतना का उद्घाटन एवं समग्र जीवन की उपस्थिति के लिए धर्मनायक का चित्रण ही भविसयत्तकहा का मूल स्वर है।