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महाकवि धनपाल की कुछ उक्तियाँ
अह णिवण जणु सोहइ न कोई,
घणुसंपय विणु पुण्णहि ण होइ । अर्थ-इस संसार में निर्धन मनुष्य की शोभा (सम्मान) नहीं होती और न धन सम्पत्ति के बिना पुण्य ही होता है ।
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पिक्खिवि प्रइरावउ गुलगुलन्तु,
किं इयर हस्थि मा मउ करन्तु । प्रयं-ऐरावत हाथी को चिंघाड़ता देखकर क्या दूसरे हाथी मद नहीं करें अर्थात् चिंघाड़ें नहीं ?
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कि उइइ मयंकि जोयंगरणउ म करउ पह। प्रर्ष-क्या चन्द्रमा के उदय होने पर तारागण अपना प्रकाश नहीं करें ?
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