Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 108
________________ 102 जनविद्या विसुद्धवंसु, जयलच्छिमरालिहि रायहंसु (17) | मध्ययुग में जो छोटे-बड़े प्रजा-वत्सल, न्याय के रक्षक रियासतदार या राजा हो गये हैं, उन्हीं की श्रेणी में भूपाल को स्थानापन्न किया जा सकता है । गजपुराधिपति भूपाल प्रजा का ध्यान रखता था। जब धनपति ने अपने विदेश गये हुए दोनों पुत्रों के न लौटने की बात उससे कही और बताया कि मैं अयश का भाजन हुआ हूँ-हउं भायणु हुउ अपसहो (6.9.2) तो राजा ने समुद्र-यात्रा करके व्यापार करनेवाले वणिग्जनों से पूछताछ की। उसी प्रकार, भविष्यदत्त ने जब बन्धुदत्त के अपराध के बारे में राजा से निवेदन किया तो उसने तत्काल उसे और उसके पिता को बुलाया और उनके अपराध को जानते ही उन्हें तथा बन्धुदत्त की माता को दण्ड दिया । जान पड़ता है, राजा से मिलना किसी को मुश्किल नहीं था। कहना न होगा कि प्रजा का ध्यान रखनेवाला राजा अपने नागरिक की बात गौर से सुनता है । यहां पर ऐसे नुपति के बारे में विशेष बात दिखायी देती है। उसने नगर के मुख्य-मुख्य लोगों को बुलाकर उनका मत जानना चाहा । उन्होंने विचार-विमर्श करके अपना मत बता दिया (10.11.12) । राजा ने जन-मत का प्रादर किया। परन्तु उसे जब भविष्यदत्त की स्त्री के अपहरण सम्बन्धी घटना का पता चला तो वह फिर क्रुद्ध हुआ। उसे लगा कि धनपति द्वारा इस सम्बन्ध में कुछ प्रोनाकानी की गयी है इसलिए उसने धनपति को भी बन्दी बनाया । इससे लोगों को दुःख हुआ। राजा को गुप्तचरों से पता चला कि नागरिक इस कारण से नगर छोड़ जाना चाहते हैं तो उसने फिर से जन-मत का प्रादर करके धनपति को मुक्त किया । इस समस्त घटना के चित्रण में राजा द्वारा प्रजाजनों को विश्वास में लेकर उनके मत का प्रादर किये जाने की बात महत्त्वपूर्ण है। ध्यान में रखना चाहिए कि प्राचीन काल में भारत में ऐसे राजाओं का प्रभाव नहीं था। ..._जान पड़ता है गजपुराधिपति भूपाल कोई साधारण राजा नहीं था। शत-शत सामन्तों द्वारा उसकी सेवा की जाती थी । देश-देश के राजा उसकी कृपा के अभिलाषी होकर उससे मिलने के लिए उपहार लेकर आया करते थे। भविष्यदत्त जब विदेश से लौटकर राजा भूपाल के दर्शन के लिए राज-प्रासाद गया तो उसे वहां अभोट, जाट, जालन्दर, गुर्जर, वैराट, लाट, गौड़ आदि देशों के राजा दिखायी दिये (10.1, 2)। इससे सूचित होता है कि महाराजा वा सम्राट् के दर्शन के लिए किस प्रकार दूर-दूर के राजा पाया करते थे। हम देखते हैं कि भविष्यदत्त का भाग्योदय किस प्रकार हो रहा है-अब तक वह धन-सम्पन्न हो चुका है, राज-कृपा का अधिकारी भी हो गया है। तदनन्तर उसे राजनीति और संग्राम में भाग लेने का और उसमें भी यश को प्राप्त हो जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस घटना से भविष्यदत्त के शौच, राजनीति-प्रावीण्य, प्रात्माभिमान, स्वामिनिष्ठा आदि कई विशिष्ट गुणों का परिचय प्राप्त हो ही जाता है। फिर भी उन दिनों राजाओं के परस्पर सम्बन्ध कैसे थे, युद्ध के कारण क्या होते थे, आदि बातों का स्वरूप भी स्पष्ट हो जाता है । पहले कहा जा चुका है कि व्यक्ति-व्यक्ति के संघर्ष के बीज कांचन और कामिनी

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