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जनविद्या
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दूषित तथा अमानवीय व्यवहारों का समुच्चय बन गई हैं। एक ओर जीवन का यथार्थ है
और दूसरी ओर कवि का काल्पनिक प्रादर्श, जो युगीन धर्म-नीति पर टिका हुमा है । धनपाल भविष्यदत्त के रूप में सुगुण-सम्पन्न व्यक्ति की कल्पना करता है और दुर्गुण-समुच्चय का यथार्थ बन्धुदत्त में प्रकट करता है । एक ओर कवि की कल्पना-सृष्टि कमलश्री है जो अपने पुत्र भविष्यदत्त को कंचनपुर की यात्रा पर जाते समय यह सिखाती है कि पराया धन और पराई स्त्री का स्पर्श मत करना । दूसरी ओर है बन्धुदत्त जो अपने नगर में जब तक रहा तब तक युवतियों के साथ अशिष्ट व्यवहार करता रहा । पूर्ण नगर उसके कुकृत्यों से तंग पा चुका है, तभी उसे योजनाबद्ध रूप से कंचन द्वीप भेजा गया है । इस प्रकार धनपाल का युग ऐसे युवकों से इस्त समाज का युग है जो अपनी पैतृक सम्पत्ति के उपभोग से उत्पन्न भ्रष्टाचार और दुराचार की प्रवृत्तियों का समुच्चय है । युवक ही नहीं सरूपा जैसी नारियां भी उस युग में विद्यमान हैं जो ईर्ष्या-द्वेष की दुष्प्रवृत्तियों का शिकार होकर स्वयं अमानवीय व्यवहार करती हैं और अपनी संतान को भी उसी व्यवहार की शिक्षा देती हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि कवि धनपाल मानव-मन की कुछ स्थितियों को शाश्वत बुराइयों से परिपूर्ण मानता है और उन्हें अपने युग के धनी पात्रों में चित्रित करता हैं, साथ ही उसी वर्ग के कमलश्री और भविष्यदत्त जैसे पात्र भी कल्पना से गढ़ता है जो धार्मिक अभ्यास से श्रेष्ठ मानवीय प्रवृत्तियों का विकास कर सकते हैं । धनपाल ने अपने युग के निर्धन पात्रों को इस यथार्थ और कल्पना के द्वन्द्व के लिए नहीं चुना, अपितु एक ही वर्ग को उदाहरण बनाकर प्रस्तुत किया है। उसकी कल्पना का भविष्यदत्त उस युग में समाज का वर्तमान नहीं, केवल भविष्य था । यह भविष्य धर्म-भावना के विकास से ही संभव है । भविष्यदत्त उसी विकास यात्रा पर जाते हुए एक धार्मिक समाज का प्रतीक है ।
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... दुर्गुणी बंधुदत्त समुद्र के मध्य में दुर्गम मदनाग पर्वत के जंगल में भविष्यदत्त को अकेला छोड़कर जलयान ले जाता है । उस भयानक जंगल में भविष्यदत्त अपनी धार्मिक भावना के बल से ही जीवित रह पाता है तथा भविष्यानुरूपा नामक सुन्दरी से विवाह करके समृद्धि और सुख के काल्पनिक युग में विचरण करता है । मनुष्य की धार्मिक भावना उसे सुख पहुंचाने का अन्तिम साधन है, यह बात धनपाल बार-बार दुहराता है। बंधुदत्त के जलयान में भविष्यदत्त जब भविष्यानुरूपा के साथ अपनी पुरानी नगरी को लौटना चाहता है तब वह पुनः बंधुदत्त के षड्यन्त्र का शिकार हो जाता है । वह अकेला उसी द्वीप पर रह जाता है तथा बंधुदत्त भविष्यानुरूपा को ले जाता है । मार्ग में वह भविष्यानुरूपा के समक्ष अपनी काम-वासना प्रकट करता है। यहां फिर धनपाल अपने युग के दूषित समाज का प्रमुख अंग बने हुए मनुष्यों के मध्य नारी को धार्मिक बल देता है और अपने शील की प्रास्था का प्राधार सुदृढ़ रखने के लिए प्रेरित करता है।
वस्तुतः धनपाल के युम का समाज अनेक प्रकार की अमानवीय बुराइयों से ग्रस्त है। उन बुराइयों से मुक्ति का साधन कोई कानून या कोई राजकीय विधान नहीं दिखाई देता । बंधुदत्त का कंचनद्वीप से धन लेकर लौटना समस्त नगर में आनन्द की लहर उत्पन्न