Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 94
________________ 88 जनविद्या इन्सान को कोई संकोच नहीं होता, यह बंधुदत्त के चरित्र से स्पष्ट है । राजा द्वारा सरूपा और बन्धुदत्त को दिये गये दण्ड से पारिवारिक कुटिलता और अनीति के दुष्परिणाम भी द्योतित हुए हैं। भारतीय नारी का पति के प्रति एकनिष्ठ, प्रचंचल और गम्भीर प्रेम विश्वप्रशंसित है । धनपाल ने पार करने, पहुँचने और चलने में गहन मैनाक पर्वत के उपमान के रूप में स्त्री-प्रेम की गहनता की चर्चा की है। पति-पत्नी का विश्वासजनित गहन प्रेम समस्त गृहस्थ जीवन के सुख का प्राधार है। व्यवसाय प्रादि सामाजिक कारणों से यदि भारतीय नव-यौवना को प्रियतम से अलग होना पड़ जाय तो वह उस अलगाव को सहसा सह नहीं पाती। उद्विग्न युवती मुखकमल को उठाये बिदा होते हुए प्रिय के मुख को निहारते रहने की चेष्टा करती रहती है, आहें भरती है। प्रश्रुकणों के प्रवाहित होते रहने पर उसके प्रांखों का काजल कपोलों को मलीन करता रहता है । व्यापार के लिए जाते हुए श्रेष्ठिकुमारों की विदाई के अवसर उनकी प्रियतमानों की उक्त मनःस्थिति उनके अनुकरणीय प्रेम की साक्षी है उम्माहउ रणरणउ वहंतिउ पुण पुण पियमुहकमलु नियंतउ । विरहदवग्गिझलुक्कियकायउ, नियान यपइ प्रणप्रविवि प्रायउ । उम्मुहमुहकमलउ उदंडउ, कज्जलजललवमइलियगंडउ । नियपइपिम्मपरव्वसिहिंग्रहिणवजोवरणइत्तियहि । उप्पायउ कासु न रहुलहउँ जुवइहि सासु मुवंतियहि । 3.20.7-11 पाणिग्रहण से प्राप्त नारी के प्रालिंगन को ही परितुष्टि देनेवाला कहकर धनपाल ने सदियों पूर्व स्वकीया प्रेम का आनन्द सर्वश्रेष्ठ ठहरा दिया है तं कलत्तु परिप्रोसियगत्तउ, जं सुहिपाणिग्गहरिण विढत्तउ । 3.19.3 उन्होंने तो पर स्त्री को माता तक समझने की शिक्षा कमलश्री से भविष्यदत्त को दिलवाई हैपरकलत्तु मई समउ गणिज्ज हि । 3.19.8 सुखद दाम्पत्य जीवन हेतु कई प्रेरणायें देने के अतिरिक्त धनपाल ने पारिवारिक कलह और उसके निवारण की स्थितियां प्रस्तुत की हैं। उनका मानना है कि एक ही सम्पत्ति पर अधिकतम अधिकार जमाने के इच्छुक परिजन एक दूसरे को कोई भी हानि पहुंचा सकते हैं । उनका चरित्र कौन जाने ? बन्धुदत्त के चरित्र पर प्राशंका.रखते हुए यह तथ्य कमलश्री ने भविष्यदत्त से कहा है

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