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भविसयत्तकहा में नीतितत्त्व
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-डॉ. गंगाराम गर्ग
अपभ्रंश कथा साहित्य में धनपाल कृत 'भविसयत्तकहा' का बड़ा महत्त्व है । अपभ्रंश साहित्य के अन्वेषकों ने नगर, समुद्र आदि विभिन्न वर्णन, वात्सल्य, शृंगार एवं करुण रस के समन्वय तथा कथा-संगठन की दृष्टि से 'भविसयत्तकहा' को श्रेष्ठ कृति प्रमाणित किया है । 'भविसयत्तकहा' में जीवन के प्रेरक तत्त्व पर्याप्त हैं ।
इसमें विशेषतः परिवार, अर्थ और वैयक्तिक व्यवहार अथवा सदाचार विषयक नीति-तत्त्वों का विवेचन हुअा है । बंधुदत्त और उसके पिता की चापलूसी और वैभव से प्रभावित हुए बिना भविष्यदत्त जैसे लुटे व निरीह व्यक्ति को न्याय देना किसी भी राजा या प्रशासन का उत्तम प्रादर्श है। इस राजनैतिक आदर्श के अलावा 'भविष्यदत्तकथा' में राजनीति कम है।
'भविसयत्तकहा' सौतिया डाह तथा एक सौत द्वारा दूसरी पत्नी की खुशियों को समूल नष्ट कर देने के प्रयत्न का कहानी है। सरूपा अपनी सौत कमलश्री को पति से विलग करके ही उत्पीडित नहीं करती अपितु उसके पुत्र भविष्यदत्त को भी अपने पुत्र द्वारा पीड़ित करवाने की चेष्टा करती है । वह अपने पुत्र द्वारा 'भविष्यदत्त को नष्ट कर उसको मां का मान-मर्दन करने की कीगई प्रतिज्ञा' को सुनकर बड़ी प्रसन्न होती है (3.16) । लोभवश और कुटिलतापूर्वक भाई को उसकी धन-सम्पत्ति के अधिकार से वंचित करने में