Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ जैन विद्या भविष्यदत्त तिलकासुन्दरी कथा उक्त नाम से भविष्यदत्तकथा को संक्षिप्त कर श्री राधामोहन जैन ने 1976 ई. में प्रकाशित किया ।1 इसकी भाषा सरल, सरस और बच्चों के लिए भी बोधगम्य है। भविष्यदत्तकथा के ज्ञानपंचमी, पंचमी, सौभाग्यपंचमी या श्रुतपंचमी कथा से सम्बद्ध होने के कारण एतद्विषयक रचनाओं में भविष्यदत्तकथा का होना बहुत सम्भव है । उक्त पंचमी कथा से सम्बन्धित रचनाएं निम्न हैं प्रज्ञात38 1. ज्ञानपंचमी कथा-तपागच्छीय श्री देवविजयगणि सं. 165632 2. ज्ञानपंचमी कथा धनकड़ 170533 3. ज्ञानपंचमी कथा जिनहर्ष समय अज्ञात34 4. ज्ञानपंचमी कथा सुन्दरगणि 5. ज्ञानपंचमी कथा मुक्तिविमल36 6. ज्ञानपंचमी कथा अज्ञात37 7. सौभाग्यपंचमी कथा 8. पंचमी कथा अज्ञात39 9. पंचमी कथा पार्श्वचन्द्र40 10. पंचमी कथा तपागच्छीय मेघविजय 11. कार्तिक सौभाग्य पंचमीकथा मंजुसूरि 12. ज्ञानपंचमी, पंचमी, कार्तिक शुक्ल श्री विजयसूरि के शिष्य पंचमी माहात्म्य या सौभाग्य पंचमी तपागच्छीय कनककौशल वि. सं. 165543 कथा 13. ज्ञानपंचमी कथा दानचन्द्र 170044 14. सौभाग्यपंचमी कथा उपाध्याय क्षमाकल्याण सं. 1829-6545. इस प्रकार यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि भविष्यदत्त की कथा जैन कथाओं में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसको आधार बनाकर इतने ग्रन्थों का रचा जाना इसकी लोकप्रियता को इंगित करता है। यह कथा किसी अनुसंधान प्रेमी को बाटजोह रही है। अनुसंधान कर्तालों और कारयिताओं को इस प्रोर दत्तावधान होना चाहिये । 1. प्रथमानुयोगमाख्यानं चरितं पुराणमपिपुण्यम् । बोधिसमाधिनिधानं बोधति बोधः समीचीनः ।। --रत्नकरण्डश्रावकाचार-43

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150