Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 25
________________ जनविद्या 19 प्रश्न- हे प्रबुद्ध ! आपने अपना काव्य किस शैली में लिखा है ? उत्तर-स्पष्ट है कि मेरा काव्य कडवकबद्ध शैली में लिखा है। मेरे सामने कवि स्वयंभू का 'पउमचरिउ' था । मैंने उसको आदर्श मानकर उसकी कडवक शैली अपनाई । मेरी रचना में तीन सौ सैंतीस कडवक हैं । इनमें प्रारम्भ में दुवई और अंत में भी दुवई का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं प्रारम्भ में दोहा या चौपाई और अन्त में दुवई तथा पत्ता प्रमुख हैं । एक कडवक में दस पंक्तियों से लेकर तेरह पंक्तियों तक में पद्धडिया छन्द का प्रयोग हुआ है । मैंने अपने काव्य में प्रसाद गुण को ही अपनाया है। मैंने नवरसों को यथास्थान उंडेला है और अलंकारों में उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक और अर्थान्तरन्यास का बहुत उपयोग किया है । सारांश में मैंने अपने काव्य में कला-पक्ष का भी सतत् ध्यान रखा है। मैंने अपनी अोर से जितना मुझे ज्ञान था उसे सावधानी से अपनी रचना को समर्पित किया है । वैसे मैं अपने को अल्पधी ही मानता हूँ। ___इतने में सूर्य की प्रथम किरण चमकी तो भेंट कर्ता आत्मा अदृश्य होने लगी। मैं केवल विदाई का प्रणाम उन्हें दे सका और विचार-मग्न हो धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ा । 1. भविसयत्त कहा 1.1.2 2. भ. क. 1.4.8 3. भ. क. 22.11.9 4 ग्रंथ का यह नाम अन्त में है - 'समता भविसयतकहा' 5. भ. क. 22.9.9-10 6. भ. क. 22.9.10 7. भ. क. 1.4.5 8. भ. क. 1.2.1-2 9. अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यान-डॉ. प्रेमचन्द्र जैन, पृष्ठ 310-11 10. भ. क. 22.9.10 11. भविसयत्तकहा-ओरियन्टल इन्स्टीट्यूट ऑफ बड़ौदा, प्रस्तावना-पृष्ठ 4 12. वही 1.4.8 13. भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य - डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पृ. 85 14. महु मज्जु मंसु पंचुंवराइ खज्जति न जम्मंतरसयाई । 16.8.1

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