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भविष्यदत्तकथा-विषयक साहित्य एक अनुशीलन
- डॉ. कपूरचन्द जैन
भारतीय साहित्य का बहुभाग प्राय: कथात्मक है यद्यपि चम्पू, कथा, प्राख्यानिका आदि अनेक माध्यम अपनाये गये हैं ।
र जहाँ तत्कालीन लोक-संस्कृति की झलक मिलती है वहीं प्रचलित जनभाषा का प्रयोग भी दिखाई देता है ।
उसके लिए गद्य, पद्य, कथात्मक साहित्य में एक दूसरी ओर तत्कालीन
जैन साहित्य इससे अछूता नहीं है। जैनाचार्यों ने जैन सिद्धान्तों को सरल, सुगम र मनोवैज्ञानिक विधि से समझाने के लिए प्राय: कथात्मक साहित्य का सहारा लिया है । ऐसे साहित्य का पारिभाषिक नाम प्रथमानुयोग' है । इस हेतु उन्होंने प्रेरणाप्रद और प्रांजल नैतिक कथाों का सृजन किया है अतः कथा-साहित्य के माध्यम से उपदेश की जो धारा प्रवाहित होती है उसका प्रभाव स्थायी होता है और व्यक्ति तदनुकूल आचरण करने के लिए व्यग्र हो उठता है ।
जैन श्रागमिक और लौकिक साहित्य में प्राराध्य होने से त्रेसठ शलाका पुरुषों का चरित विस्तार तथा बहुतायत से तो वरिणत है ही, साथ ही अन्य महापुरुषों के चरित भी कम नहीं लिखे गये हैं । पर्वों और व्रतों का जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान होने से उनकी श्रावश्यकता, प्रयोग, उपयोगिता और महत्त्व को उद्भाषित करता हुआ प्रचुर कथा - साहित्य लिखा गया है ।