Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 48
________________ जनविद्या ऐसे ही व्रतों में "श्रुतपंचमी", "ज्ञानपंचमी" या "सौभाग्यपंचमी" व्रत महत्त्वपूर्ण है । विभिन्न कथा-कोषों में इस व्रत-विषयक अनेक कथायें दी गई हैं जिसमें भविष्यदत्त-कथा सबसे महत्त्वपूर्ण और बहु-प्रचलित है। इस कथा को लेकर संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में भी अनेक स्वतंत्र काव्य लिखे गये हैं जिनका विवेचन प्रस्तुत शोध-निबंध का विषय है । नाम, स्थानादि कुछ परिवर्तनों के साथ कथा का जो स्वरूप भिन्न-भिन्न साहित्य में मिलता है वह इस प्रकार है कुरुजांगल देशीय हस्तिनापुर (गजपुर) नगर में भूपाल (भुवालु) राजा राज्य करता था । नगरसेठ धनपाल (धनपति) का सेठ धनेश्वर की रूपवती कन्या "कमलश्री" से विवाह हुआ। कुछ काल बाद उनके भविष्यदत्त नाम का पुत्र हुआ। धनपति ने सरूपा नाम की एक दूसरी कन्या पर आसक्त होकर उससे विवाह कर लिया जिससे बंधुदत्त नाम का पुत्र हुआ। फलतः कमलश्री उपेक्षित होकर अपने पिता के पास चली गई। बंधुदत्त पांच सौ व्यापारियों के साथ व्यापारार्थ निकला। मां की प्राज्ञा से भविष्यदत्त भी साथ हो लिया। बंधुदत्त की मां ने भविष्यदत्त को रास्ते में मारने की सलाह दी। फलतः मदनाग, मैनारु या मदनद्वीप पर भविष्यदत्त को अकेला छोड़कर बंधुदत्त आगे बढ़ गया। ... - भविष्यदत्त भटकता हुआ एक उजड़े किन्तु समृद्ध नगर में पहुंचा। वहाँ एक असुर जो भविष्यदत्त का पूर्वजन्म का मित्र था और जिसने नगरी को उजाड़ा था, भविष्यदत्त का विवाह भविष्यानुरूपा या तिलका-सुन्दरी नाम की एक दिव्य सुन्दरी से करा देता है। चन्द्रप्रभ जिनालय में भविष्यदत्त चन्द्रप्रभ जिन की पूजा करता है। . इधर पुत्र के लौटने में विलम्ब होने से चिन्तित कमलश्री पुत्र-कल्याणार्थ सुव्रता आर्थिका से श्रुतपंचमी व्रत लेकर उसका पालन करती है, उसी व्रत के प्रभाव को बताने के लिए यह कथा लिखी गई है। प्रचुर सम्पत्ति और पत्नी के साथ भविष्यदत्त घर लौटता है। बंधुदत्त भी सभी व्यापारों में असफल होकर विपन्नावस्था में लौटता है। रास्ते में दोनों की भेंट होती है, भविष्यदत्त बंधुदत्त की सहायता करता है और प्रस्थान-पूजा करने नगर में जाता है (कुछ के अनुसार भविष्यानुरूपा अपनी अंगूठी सेज पर छोड़ आई थी जिसे लेने भविष्यदत्त नगर की ओर जाता है), तभी छल से बंधुदत्त जहाज चलवाकर चल पड़ता है। रास्ते के आये तूफान को पारकर किसी प्रकार हस्तिनापुर पहुंच जाता है और भविष्यानुरूपा को अपनी भावी पत्नी बताकर विवाह-तिथि की घोषणा कर देता है ।

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