Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 38
________________ 32 . जैनविद्या वस्तुवर्णन (संध्या, सूर्य प्रादि का वर्णन) 2. सामाजिक वर्णन (विवाह, युद्ध, यात्रा का वर्णन) । राजशेखर ने इसका विस्तृत रूप से विवेचन किया है । 13 ___ प्रस्तुत कथाकाव्य में परम्परामुक्त वस्तुपरिगणन शैली के साथ ही लोक-प्रचलित शैली में भी जन-जीवन का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। कवि ने जिन वस्तुओं का वर्णन किया है उनमें उसका हृदय साथ देता है। अतएव ये वर्णन सरस और सुन्दर हैं । देशों और नगरों का वर्णन करता हुआ कवि उनके कृत्रिम आवरणों से ही प्राकृष्ट न होकर उनके स्वाभाविक, प्राकृत अलंकरणों से भी मुग्ध होता है। कुरुजांगल देश की समृद्धि के साथ-साथ कवि वहां के कमलप्रभा से ताम्रवणं एवं कारंड-हंस-वकादि चुम्बित सरोवरों को और इक्षुरस पान करनेवालों को भी विस्मरण नहीं करता 1.5.8-10 जहिं सरई कमलपहतंबिराइं कारंव्हंसवयचुंबिराई । ... "पुडुच्छरसइं लीलई पियंति ॥ गजपुर का वर्णन करता हुआ कवि उसके सौंदर्य से आकृष्ट होकर कहता है तहिं गयउरु गाउं पट्टण, जगजरिणयच्छरिउ । गं गयणु मुएवि सग्गखंड महि अवयरिउ ॥ 1.5 कवि ने थोड़े से शब्दों में गजपुर की समृद्धि और सुन्दरता को अभिव्यक्त कर दिया है । कवि के इन विचारों में "वाल्मीकि रामायण" के लंकावर्णन एवं कालिदास के "मेघदूत" में उज्जयिनीवर्णन का आभास स्पष्टरूप से दिखाई देता है । स्वयंभू के "हरिवंशपुराण" में विराटनगर के और पुष्पदंत के "महापुराण" में पोयणनगर के वर्णन में भी यही कल्पना की गई है।14 "भविसयत्तकहा" में धनपति एवं कमलश्री के विवाहोत्सव पर भवन की सजावट, तोरणबंधन, रंगोली, चौक, विविध मिष्टान्न, प्राभूषण प्रादि की सुव्यवस्थाएं कर प्रीतिभोज का वर्णन किया गया है। प्रीतिभोजोपरांत मंगलमंत्रों एवं घी की आहुति के साथ वरमाला डालकर विवाह की अंतिम प्रक्रिया सम्पन्न की जाती थी।15 शासन का कार्य यद्यपि राजा ही करता था किन्तु कभी-कभी उसे जनता की भावना का भी ध्यान रखना पड़ता था। ता था। राजा भूपाल जब बंधुदत्त एवं उसके पिता धनपति को कारागार में डाल देता है तब दूत उसे पाकर समाचार देता है- “घर-घर में कार्य बंद हो गया है, नर-नारी रुदन कर रहे हैं, बाजार में लेन-देन ठप्प है तथा आपकी मुद्रा का प्रचलन भी बंद है ।" इस परिस्थितिवश अंत मे राजा को उन्हें छोड़ देना पड़ता है।16 इस प्रकार यह कथाकृति नगर, समुद्र, द्वीप, विवाह, युद्धयात्रा, राजद्वार, ऋतु, शकुन, रूप आदि वस्तुवर्णनों की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है ।।

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