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जनविद्या
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इस प्रकार प्रस्तुत काव्य के कथानक में आदर्श और यथार्थ का अपूर्व सम्मिश्रण है। कवि ने लौकिक आख्यान के द्वारा श्रुतपंचमी व्रत की महत्ता प्रदर्शित की है। कथा में घटनाओं का विकास सम्बद्ध, स्वाभाविक और संवेदनीय है। कविश्री धनपाल की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह घटनाओं के विन्यास में पात्रों के व्यक्तित्व के विकास का पूरा ध्यान रखते हैं । घटना बाहुल्य के होते हुए भी घटना वैचित्र्य उच्चकोटि का नहीं ठहरता है तथापि काव्य में काव्यानुरूप अनेक सुन्दर स्थल विद्यमान हैं उनमें अप्रतिम प्रवाह है और है अद्भुत निखार । वस्तुतः 'भविसयत्तकहा' पद्य-बद्ध धार्मिक उपन्यास है। मनुष्य की भवितव्यता की प्रतीक कथा है। चरित्र-चित्रण
समीक्ष्यकाव्य में प्रमुखरूप से साधु और असाधु स्वभाववाले दो प्रकार के व्यक्तियों का वर्णन परिलक्षित है । भविष्यदत्त और बंधुदत्त, कमलश्री और स्वरूपा दो विरोधी प्रवृत्ति के पुरुष और स्त्री हैं । स्वरूपा में सपत्नी-सुलभ ईर्ष्या के साथ स्त्री-सुलभ दया का कवि द्वारा सफल चित्रांकन हुआ है । काव्यकृति में धनवई, कमलश्री और स्वरूपा के चरित्र प्रमुखता लिये हैं तो नायक भविसयत्त के चरित्र विकास में कवि-कौशल द्रष्टव्य है । भविसयत्त तिलकद्वीप में अकेला व्याकुल भटकता है तत्समय की उसकी मनोदशा का चित्र सजीव और प्रभावक है। यथा
गयं णिप्फलं ताम सव्वं वरिणज्ज हुवं प्रम्ह गोत्तम्मि लज्जावरिणज्ज। रण जत्ता ण वित्तं रण मित्तं रण गेहं ण धम्मं रण कम्मं रण जीयं ण वेहं॥ रण पुत्तं कलत्तं रण इळे पि विट्ठ गयं गयउरे दूरदेसे पइठें। खयं जाइ नूणं महम्मेण धम्मं विणद्वेण धम्मेण सव्वं प्रकम्मं ॥ 3.26
. इस प्रकार यह पहला चरितकाव्य है जिसमें पात्रों के व्यक्तित्व का कुछ स्वतंत्र अस्तित्व है । अपमानित कमलश्री तब तक स्थायी रूप से धनवई के घर नहीं जाती जब तक वह मुग्राफी नहीं मांग लेता। इसी प्रकार भविष्यदत्त अंगीकार करने से पूर्व पत्नी की परीक्षा लेता है तो दूसरे विवाह से पूर्व वह अपने भावी पति से आश्वासन लेना नहीं चूकती । चरित्रचित्रण में मनोवैज्ञानिकता का सन्निवेश इस काव्य की विशेषता है ।
वस्तुवर्णन
अपभ्रंश प्रबन्धकाव्यों की कथा के मध्य ऐसे स्थल होते हैं जिनका सम्बन्ध इतिवृत्त से न होकर हृदय की रागात्मक वृत्ति से अधिक होता है। यही स्थल वस्तुवर्णन है। प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार ये वस्तुवर्णन दो रूपों में उपलब्ध हैं।11. कवि द्वारा वस्तु व्यंजना के रूप में 2. पात्र द्वारा भाव व्यंजना के रूप में। महाकाव्य के लिए वस्तुवर्णन का जो विधान है उसके भी दो भेद हो सकते हैं12-1. प्राकृतिक