Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 44
________________ 38 जैन विद्या (2) अपभ्रंश प्रवेश, विपिन बिहारी त्रिवेदी, पृष्ठ 33 (3) अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियां, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पृष्ठ 34 (4) आर्यभाषानों के विकास क्रम में अपभ्रंश तथा अन्य निबन्ध, डॉ० सरनामसिंह शर्मा 'अरुण', पृष्ठ 17 हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवरसिंह, पृष्ठ 212 7. (1) जैन साहित्य की हिन्दी साहित्य को देन, श्री रामसिंह तोमर, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ 466 (2) जैन साहित्य, श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ 453 8. (1) हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप तथा विकास, डॉ० शम्भूनाथसिंह, पृष्ठ 186 ___(2) अपभ्रंश काव्य परम्परा और विद्यापति, डॉ० अम्बादत्त पंत, पृष्ठ 155 9. हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग 3, डॉ० विंटरनिट्ज, पृष्ठ 533 10. अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन, पृष्ठ 180 11. पद्मावत, पृष्ठ 78 12. साहित्य दर्पण, अध्याय 6.322-324 13. काव्यमीमांसा, अध्याय 8 14.- अपभ्रंश साहित्य, प्रो० हरिवंश कोछड, पृष्ठ 28 15. भविसयत्तकहा-18.10 16. भविसयत्तकहा, पृष्ठ 70, अपभ्रंश भाषा और साहित्य, पृष्ठ 276 17. तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा, भाग 4, डॉ० नेमीचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य, प्र०-अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद, सागर, 1974 ई०, पृष्ठ 114 18. भविसयत्तकहा, पृष्ठ 5 19. भविसयत्तकहा, पृष्ठ 32-33 20. भविसयत्तकहा-15.1.7, 21. भविसयत्तकहा-3.24.5 22. भविसयत्तकहा-4.3.1 23. भविसयत्तकहा, पृष्ठ 22 24. भविसयत्तकहा-4.4.3 25. अपभ्रंश साहित्य, प्रो० हरिवंश कोछड, पृष्ठ 100

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