Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 23
________________ जनविद्या . . -17 1. मंगलाचरण, सज्जन-दुर्जन-प्रशंसा । 2. धनपाल सेठ और उसकी पत्नी पुत्राभाव से चिंतित । 3. मुनि की भविष्यवाणी के अनुसार समय पर पुत्र-रत्न की प्राप्ति । 4. धनपाल का दूसरी शादी करना । 5. पहली पत्नी और भविष्यदत्त की उपेक्षा । 6. दूसरी पत्नी से बंधुदत्त का उत्पन्न होना । 7. दोनों पुत्रों का 500 व्यापारियों के साथ देशान्तर-भ्रमण पर जाना । 8. समुद्र में तूफान का आना और बधुदत्त द्वारा भविष्यदत्त को धोखा देकर तिलक द्वीप . पर छोड़ जाना। 9. भविष्यदत्त का जनशून्य नगरी में पहुंचना। 10. वहां प्रतीव सुन्दरी कन्या के दर्शन । 11 एक राक्षस द्वारा दोनों का विवाह कराना और 12 वर्ष तक साथ-साथ रहना । 12. समुद्र के किनारे किसी जहाज की खोज में जाना, वहां असफल बंधुदत्त से भेंट । 13. बंधुदत्त द्वारा क्षमायाचना और भविष्यदत्त की सारी सम्पत्ति तथा पत्नी को जहाज पर चढ़ाना। 14. जहाज चलने से पूर्व भविष्यदत्त का जिनमंदिर में दर्शन करने जाना और बंधुदत्त द्वारा उसे छोड़कर उसकी सम्पत्ति व उसकी पत्नी को लेकर भाग जाना । 15. देव की सहायता से भविष्यदत्त का घर पहुंचना । 16. राजा से शिकायत और न्याय प्राप्त करना । 17. राजा द्वारा भविष्यदत्त को अपना उत्तराधिकारी बनाना व राजकुमारी से विवाह करना। 18. प्रथम पत्नी की मातृभूमि जाने की इच्छा, मैनाक द्वीप की यात्रा और जैन मुनि के दर्शन । 19. कुछ दिन बाद मुनि द्वारा भविष्यदत्त के पूर्वभव का वर्णन और भविष्यदत्त का वैराग्य । 20. श्रुतपंचमी का माहात्म्य । इस प्रकार मैंने कथानकरूढ़ियों का ढांचा स्पष्ट कर दिया है । प्रश्न-पापने बड़ी सुन्दरता से कथानकरूढ़ियों के माध्यम से सम्पूर्ण कथा का सार बता दिया है ? किन्तु आपने "बिहिखंडहिं बावीसहि संधिहि परिचितियनियहेउ निबंपिहि"10 लिखकर कथा को दो भागों में क्यों बांटा ? जबकि अनेक विद्वान् इसे तीन भागों में बांटने के पक्ष में हैं।

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