Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 22
________________ जैन विद्या उत्तर—यह सच है कि मेरी रचना विभिन्न नामों से विश्रुत है । मैंने प्रारम्भ में ही इसे 'सुयपंचमीकहा' याने 'श्रुतपंचमीकथा'" कहा है। श्रेणिक ने गौतम गणधर से 'सुयपंचमीकहा ' पूछी है । 2 गौतम गणधर ने इसी कथा को 'सुयपंचमीकहा' कहा है। ग्रंथ के अन्त में भी इसे 'श्रुतपंचमीकथा' ही कहा है । अत मैं मूलरूप से इसे 'सुयपंचमीकहा' या 'श्रुतपंचमीकथा' मानता हूं किन्तु कथा का नायक भविसयत्त ( भविष्यदत्त ) है और सारी कथा इस कथानायक से लिपटी हुई है अतः इसे 'भविसयत्तकहा' कहना भी अनुचित नहीं है । लोक में यह भविष्यदत्तकथा के नाम से प्रचलित है। मैं भी लोकभावना का आदर करता हूं और इस रचना को 'भविसयत्तकहा' भी कहता हूँ 14 16 प्रश्न – कविरायजी ! आपने अपना परिचय तो केवल दो पंक्तियों में दिया है । इतना कम क्यों ? उत्तर - मैंने अपना परिचय अन्तिम संधि में यह दिया है धक्कड वरिणवंसि माएसरहो समुम्भविरण | सिरिदेवि एण विरइङ सरसइसंभविण ॥15 अर्थात् मैं धक्कड बनिया वंश में उत्पन्न हुआ, पिता मायेश्वर और मां का नाम धनश्री है, साथ ही मैं देवी सरस्वती का पुत्र हूं । मेरी समझ से यही पर्याप्त है । प्रश्न - हे शारदापुत्र ! आपने स्वयं को 'सरस संभविरण (सरस्वतीप्रसूत पुत्र ) 8 कहा, साथ ही 'सरसइबहुलद्धमहावरेण' (सरस्वती के बहुलब्ध महावरदान से ) 7 कहा, क्या यह श्रात्मश्लाघा या स्वप्रशंसा नहीं है ? उत्तर - आपकी शंका समुचित है । वास्तविकता यह है कि इस कथा को लिखने के पूर्व मैंने चार सुन्दर रचनायें भी की थीं, जिनको पढ़कर या सुनकर, राजा व प्रजा मुझे सरस्वती वर प्राप्त या सरस्वती पुत्र कहते थे । वह मेरे लिए जनता की स्नेहमयी पदवी थी। मैंने जनता की प्रदत्त पदवी व संबोधन को अपनाकर लिखा है । वास्तव में मैंने प्रारम्भ अपने लिए 'हमंदबुद्धि गिग्गुर गिरत्थु मोहंघयारि' ( मैं मंदबुद्धि, निर्गुण, निरर्थक, मोहान्धकारी ) 8 ये विशेषण लिखे हैं । इससे सोच सकते हैं कि मैं स्वप्रशंसा या अभिमानग्रस्त नहीं हूं। पर विद्वद्गण व प्रजा ने जो विशेषण या पद मेरे लिए प्रदत्त किये हैं, उन्हें स्वीकार करने में मैं वास्तव में प्रजा का आदर समझता हूं । स्नेह से दी हुई कोई भी वस्तु या विशेषण को अस्वीकार करना स्नेही का अनादर है । अतः मैं उन विशेषरणों का प्रयोग स्पष्टतः करता हूँ । प्रश्न - विद्वद्वर ! 'भविसयत्तकहा' का अभिप्राय या ढ़ांचा जिसे कथानक रूढ़ि कहते हैं वे क्या हैं ? उत्तर - प्रश्न श्रापका सुन्दर है। वास्तव में कथानक रूढ़ि पर कथा की इमारत चुनी जाती है। वह निम्नलिखित है

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