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द्वीपान्तर -गमन समय भविस को माता की शिक्षा
बहु रइ वयरणालाउ रग किज्जइ ।
जंपति महियलु जोइज्जइ ।
यह होंति जुवारह मुद्धउ
तरुणिवयरगदंसर रसलुद्धउ ॥
अर्थ- स्त्रियों में अधिक रुचि मत दिखाना, उनके साथ अधिक वार्तालाप मत करना, उनसे वार्तालाप करते समय नेत्रों को नीचे पृथ्वी की ओर झुके रखना क्योंकि जवान मूढ़ और तरुणियों के वचन व दर्शन के रस के लोलुप होते हैं ।
घत्ता - जोवरण वियाररसवसपसरि
सो सूरउ सो पण्डियउ । चल मम्मरणवयणुल्लावएहि
जो परतियह रग खंडियउ ॥
अर्थ-यौवन के विकार रूपी रस के प्रभाव से प्रभावित होकर परस्त्रियों के चंचल कामदेव के वचन और गुप्त संकेतों से खण्डित मत होना । शूरवीर ऐसा ही होता है, पण्डित ऐसा ही होता है ।
भवि. 3.18.7-10