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विवेचन हैं, दूसरे विभाग में मुनि जीवन से सम्बन्धित षोडश संस्कारों का विवेचन हैं और अन्तिम तृतीय विभाग के आठ उदयों में गृहस्थ और मुनि दोनों द्वारा सामान्य रूप से आचरणीय आठ विधि-विधानों का उल्लेख हैं। इस ग्रन्थ में वर्णित चालीस विधि-विधानों को निम्न सूची द्वारा जाना जा सकता हैं :
नि
| (अ) गृहस्थ सम्बन्धी । (ब) मुनि सम्बन्धी (स) मुनि एवं गृहस्थ
सम्बन्धी | १ गर्भाधान संस्कार | १ ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण संस्कार १ प्रतिष्ठा विधि | २ पुंसवन संस्कार २ क्षुल्लक विधि
| २ शान्तिक-कर्म विधि ३ जातकर्म संस्कार ३ प्रव्रज्या विधि
३ पौष्टिक-कर्म विधि ४ सूर्य-चन्द्र दर्शन ४ उपस्थापना विधि ४ बलि विधान
संस्कार ५ क्षीराशन संस्कार ।५ योगोद्वहन विधि
५ प्रायश्चित्त विधि ६ षष्ठी संस्कार ६ वाचनाग्रहण विधि ६ आवश्यक विधि ७ शुचि संस्कार ७ वाचनानुज्ञा विधि
७ तप विधि ८ नामकरण संस्कार ८ उपाध्यायपद स्थापना विधि ८ पदारोपण विधि |६ अन्न प्राशन संस्कार | ६ आचार्यपद स्थापना विधि | १० कर्णवेध संस्कार । १० प्रतिमाउद्वहन विधि
११ चूडाकरण संस्कार | ११ व्रतिनी व्रतदान विधि | १२ उपनयन संस्कार १२ प्रवर्तिनीपद स्थापना विधि | | १३ विद्यारम्भ संस्कार । १३ महत्तरापद स्थापना विधि | १४ विवाह संस्कार १४ अहोरात्र चर्या विधि | १५ व्रतारोपण संस्कार | १५ ऋतुचर्या विधि | १६ अन्त्य संस्कार १६ अन्तसंलेखना विधि
इस प्रकार यह कृति मूलतः तीन विभागों में विभाजित हैं। प्रथम विभाग में गृहस्थ जीवन के षोडश संस्कारों का विवेचन हैं। इस विभाग का अनुवाद पूर्ण होकर छप चुका है और उसकी भूमिका में मैंने गृहस्थ जीवन के षोडश संस्कारों का भारतीय परम्परा में क्या स्थान रहा है और वे किस प्रकार जैन परम्परा में गृहीत हुए तथा
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