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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान से और काया से न स्वयं मैथुन-सेवन करूंगा, न करवाऊंगा और न अन्य किसी मैथुन-सेवन करने वाले का अनुमोदन करुंगा।"
"हे भगवन् ! मैं अतीतकाल में किए गए मैथुनकर्म से निवृत्त होता हूँ, उसकी निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूँ एवं उसके प्रति अपनी ममत्ववृत्ति का त्याग करता हूँ।" इस ब्रह्मचर्यव्रत का तीन बार उच्चारण, अर्थात् प्रतिज्ञा करे।
"हे भगवन् ! मैं चतुर्थ महाव्रत की साधना के लिए तत्पर हुआ हूँ। इसमें सब प्रकार के मैथुन-सेवन से विरत होना होता है।"
इसके पश्चात् "हे भगवन् ! पंचम महाव्रत में परिग्रह से विरत होना होता है। मैं सब प्रकार के परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ। जैसे कि - गाँव में, नगर में, या अरण्य में, अर्थात् कहीं भी, चाहे अल्प हो या बहुत, सूक्ष्म हो या स्थूल, सचित्त हो या अचित्त, किसी प्रकार के परिग्रह का न तो स्वयं ग्रहण करना, न दूसरों से परिग्रह का ग्रहण कराना और न ही परिग्रहण करने वाले अन्य किसी का अनुमोदन करना। परिग्रहत्याग की यह प्रतिज्ञा मैं यावज्जीवन के लिए तीन करण और तीन योग से करता हूँ, अर्थात् मैं मन से, वचन से और काया से न तो परिग्रह का ग्रहण करूंगा, न करवाऊंगा और न किसी करने वाले का अनुमोदन करूंगा।"
"हे भगवन् ! मैं अतीत में गृहीत परिग्रह से निवृत्त होता हूँ। मेरी उस प्रवृत्ति की मैं निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूँ एवं उसके प्रति अपनी ममत्ववृत्ति का त्याग करता हूँ।" इस प्रतिज्ञा का तीन बार उच्चारण करे।
"हे भगवन् ! मैं परिग्रह-त्याग रूप पंचम महाव्रत की साधना के लिए तत्पर हुआ हूँ। इसमें सब प्रकार के परिग्रह से विरत होना होता है।"
इसके पश्चात् "हे भगवन् ! छटे व्रत में रात्रि-भोजन से विरत होना होता है। हे भगवन् ! मैं सब प्रकार के रात्रि-भोजन का प्रत्याख्यान करता हूँ। जैसे कि - अशन, पान, खाद्य एवं स्वाद्यरूप किसी भी वस्तु का न रात्रि में स्वयं उपयोग करना, न दूसरों को रात्रि भोजन कराना और न रात्रि में उपभोग करने वाले किसी व्यक्ति का अनुमोदन करना। यह प्रतिज्ञा मैं यावज्जीवन के लिए तीन करण
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