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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
आचारदिनकर (भाग-२) | उद्देशक | १/२ १/२ १/२ | १/२
काउस ६ | ६ | ६ | ६
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काल । २० २१ । अध्ययन | १३ । | १४ आ.
। आ.-६ -७ उद्देशक काउसग्ग ३ । ३ ।
२२ । २३ । १५ भा. | १६ वि.
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२४ श्रु.स. ,अ.न.
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अब सूत्रकृतांगसूत्र के योगोद्वहन की विधि का विवरण हैं। सूत्रकृतांग में दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध के योग की विधि निम्नांकित है :
प्रथम दिन - पहले दिन योगवाही नंदीक्रिया, आयम्बिल-तप . एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया सूत्रकृतांग की वाचना के उद्देश्य से की जाती है। इसमें प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि की जाती है, साथ ही इसमें प्रथम अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही ग्यारह बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना, ग्यारह बार द्वादशावर्त्तवन्दन, ग्यारह बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे एवं ग्यारह बार कायोत्सर्ग
करे।
द्वितीय दिन - दूसरे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
तृतीय दिन - तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया द्वितीय वैकालिक नामक अध्ययन के उद्देश एवं समुद्देश के उद्देश्य से की जाती है, साथ ही इसमें द्वितीय अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा
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