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आचारदिनकर (भाग - २)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान से रहित होकर मधुर स्वर से सिद्धांत का वाचन करे । यहाँ वाचना लेने पर परिपाटी वाचना, अर्थात् आवर्तन करना योग्य है । अर्थग्रहण तथा टीका - चूर्णि आदि के व्याख्यान के बीच कालग्रहण आदि की क्रिया का भी वर्जन होता है । सर्व प्रथम दशवैकालिकसूत्र की वाचना दे । फिर आवश्यक, उत्तराध्ययन, आचारांग सूत्र की वाचना दें। शेष आगमों की वाचना अध्येता की रूचि के अनुसार यथायोग्य क्रम या उत्क्रम से दे ।
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वाचना देने के बाद गुरु के साथ स्वाध्याय - प्रस्थापना करे । फिर “अनुयोग के ( अर्थात् सूत्र अर्थ का प्रतिपादन करते समय लगे दोषों के) प्रतिक्रमणार्थ में कायोत्सर्ग करता हूँ" ऐसा कहकर एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करे, कायोत्सर्ग में नमस्कार मंत्र का चिन्तन करे । कायोत्सर्ग पूर्ण करके नमस्कार मंत्र बोले, वाचनाक्रम में वाचना करते हुए संघट्ट और आयम्बिल आदि कुछ भी न करें । साधु को हमेशा इस प्रकार की दिनचर्या करनी चाहिए । वाचना ग्रहण करने तक प्रतिदिन प्रभात कालग्रहण, स्वाध्याय- प्रस्थापन दोनों का अनुयोग एवं कायोत्सर्ग करे ।
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इस प्रकार आचार्य श्री वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में यतिधर्म के उत्तरायण में वाचनाग्रहण कीर्तन नामक यह बाईसवाँ उदय समाप्त होता है ।
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