Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 228
________________ आचारदिनकर (भाग - २) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान तीन दिन श्रावकों की इच्छानुसार उनके कर्त्तव्यादि की वाचना दें। जहाँ-जहाँ वाचना होती है, वहाँ संघपूजा और महोत्सव भी होता है । मुनियों को सर्वशास्त्र पढ़ने चाहिए, परन्तु व्याख्यान और आचरण तो परम आगम में कहे गए अनुसार ही करना चाहिए। जैसा कि आगम में कहा गया हैं सब सीखें, पर सभी का आचरण न करे, अर्थात् जानें सब कुछ पर पालन उसी का करें, जो आगम में निर्दिष्ट है। 185 आचार्य वर्द्धमानसूरिकृत "आचारदिनकर" में यतिधर्म के उत्तरायण में ऋतुचर्या व्याख्यान कीर्तन नामक यह एकतीसवाँ उदय समाप्त होता है । Jain Education International wen met me tend For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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