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आचारदिनकर (भाग - २)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
कर्मक्षय एवं मोक्ष की आकांक्षा वाले वृद्ध निरोगी मुनि द्वारा ग्रहण की जाने वाली संलेखना की अवधि बारह वर्ष बताई गई है। उसकी विधि इस प्रकार हैं.
चार वर्षपर्यन्त विभिन्न प्रकार के तप करे । चार वर्षपर्यन्त विविध प्रकार के तप करते हुए विकृति ( विगय) रहित पारणा करे । दो वर्ष एकान्तरित आयम्बिल सहित उपवास करे । पश्चात् छः मास तक विकृष्ट नहीं, किन्तु हल्का (सामान्य) तप करे और पारणे के दिन परिमित आहार लेकर आयंबिल करे। तत्पश्चात् छः मास तक विकृष्ट तप करे, फिर एक वर्ष पर्यन्त कोटि सहित आयंबिल करे । इस प्रकार बारह वर्ष तक संलेखना हेतु तप करने के पश्चात् पर्वत की गुफा में जाकर पादोपगमन अनशन स्वीकार करे । चार वर्ष तक एकान्तरित उपवास के पारणे एकभक्त, इस प्रकार का विचित्र तप करे । इसी विधि को ही स्पष्ट करते हुए अन्यत्र इस प्रकार से भी कहा गया है चार वर्ष तक विभिन्न तप, अर्थात् बिना अन्तर के दो उपवास, तीन उपवास, चार उपवास, पाँच उपवास, आठ उपवास, पक्षक्षमण ( पन्द्रह दिन के निरन्तर उपवास), मासक्षमण आदि करे। पारणे में एकासन करे । तत्पश्चात् पुनः चार वर्ष तक इसी प्रकार एकान्तर तप, अर्थात् एक दिन उपवास और एक दिन आहार करे, उस पारणे के दिन भी नीवि करे । फिर दो वर्ष तक एकान्तर तप करे तथा पारणे में नीव या आयम्बिल करे । फिर छः मास तक उपवास या छट्ठ करे तथा पारणे में ऊनोदरीयुक्त आयम्बिल करे । तत्पश्चात् छः मास तक दशम तप करे और पारणे में आयम्बिल करे । तत्पश्चात् एक वर्ष तक कोटिसहित (विशेष नियम सहित ) आयम्बिल करे। कोटिसहित आयम्बिल में आयम्बिल के बाद पुनः आयम्बिल इस प्रकार सतत आयम्बिल होते हैं। तत्पश्चात् पर्वत की अनशन करके वांछित गति को प्राप्त यह बारह वर्ष के संलेखना की विधि है । इन बारह वर्षों के मध्य भी यदि साधु मृत्यु को प्राप्त कर लेता है, तो उसमें कोई दोष नहीं है । आगम में कही गई
गुफा में जाकर पादोपगमन
करे
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/ / बत्तीसवाँ उदय // अंतिम संलेखना विधि
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