Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 170
________________ आचारदिनकर (भाग-२) 127 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान अनुज्ञा देने की भी यही विधि है, किन्तु गणनायक पद देते समय गुरु द्वारा "वाचनाचार्य हुए" - यह नहीं बोला जाता है। नंदीपाठ, वर्द्धमानविद्या- मंत्र प्रदान, पट-दान और आसन-दान की क्रिया भी नहीं होती है। गणनायक का उत्तम पद भी आचार्य के समान गुणों से युक्त मुनि को ही दिया जाता है। इस प्रकार आचार्य श्री वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर नामक ग्रंथ में यतिधर्म के उत्तरायण में वाचनानुज्ञा कीर्तन नामक यह तेईसवाँ उदय पूर्ण होता है। --------००--------- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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