Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 224
________________ चारदिनकर (भाग - २) 181 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान भी सूर्योदय के समय जो तिथि है, उसी को प्रशंसनीय मानते हैं । पुनः मास के वर्जन के सम्बन्ध में अन्य लोग इस प्रकार भी कहते हैं कि जिसमें सूर्य अन्य राशि में संक्रमण न करे, ऐसे सूर्यलंघित अधिकमास में भी सर्वकर्म विवर्जित कहे गए हैं। भानुलंघित अधिकमास में पैतृककर्म न करे । कहा गया है कि इस काल में दिया गया महद्दान भी अनित्य और अनिमित्त होता है । इसी प्रकार इस मास में किए गए अग्निहोत्र, यज्ञकर्म, तीर्थयात्रा एवं देवयात्रा भी निष्फल होते हैं । देवप्रतिमा, आराम (उद्यान), तड़ाग ( सरोवर ) आदि की प्रतिष्ठा, मोंजी-बन्धन अग्निस्थापना या यज्ञकर्म, इच्छित मृत पुरुष के नाम पर किसी सांड को चिन्हित करके छोड़ना, राज्याभिषेक करना, प्रथम बार चूड़ाकरण करना, अन्नप्राशन एवं नूतन गृह में प्रवेश, व्रत का प्रारम्भ या समाप्त करना ( उद्यापन ), काम्यकर्म एवं पापों की आलोचना आदि सभी कार्य मलमास में न करे । पर्यूषण में संघ के समक्ष कल्पसूत्र की वाचना करे तथा केश उतारें । केश उतारने की विधि इस प्रकार बताई गई है : साधुओं के केश उतारने की विधि तीन प्रकार की है १. उस्तरे से २. कैंची से एवं ३. लोच द्वारा । कैंची द्वारा मुण्डन कराने वाले साधु एक-एक पक्ष में, अर्थात् प्रत्येक पक्ष में पुण्डन कराएं। उस्तरे से मुण्डन कराने वाले साधु प्रत्येक मास में मुण्डन कराएं और लोच करवाने वाले साधु चातुर्मास के अन्त में, छः मास के अन्त में या वर्ष के अन्त में लोच करे । क्षुरमुण्डन (उस्तरे से मुण्डन) एवं कैंची द्वारा मुण्डन कराते समय भी खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दनं करना आदि सब क्रियाएँ लोच की भाँति ही करे। मात्र- "दुक्करकियं इंगिणी सहिया " ये गुरुवचन लोच के सिवाय अन्यत्र न बोलें । क्षोर कर्म के नक्षत्र न होने पर भी क्षोरकर्म की उत्सुकता हो, तो हस्त, चित्रा, स्वाति, मृगशीर्ष, ज्येष्ठा, रेवती, पुनर्वसु, श्रवण एवं धनिष्ठा नक्षत्र में भी क्षुर कर्म करना शुभ बताया गया है यहाँ जैसा कि कहा गया है - " कार्य की उत्सुकता की स्थिति में, तीर्थ में, प्रेत क्रिया के समय, दीक्षा एवं जन्म के समय, माता-पिता की मृत्यु के समय और क्षौरकर्म कराने में नक्षत्रादि का चिन्तन न करे । 1 Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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