Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 169
________________ 126 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान हूँ"- यह कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में चतुर्विंशतिस्तव बोलें। फिर गुरु शिष्य के कान में वासक्षेपपूर्वक सर्वअवधि से लेकर मध्यगतलब्धि तक के चारों पदों को छोड़कर तीन बार वर्द्धमानविद्या मंत्र दें। शिष्य उसे सम्यक् रूप से अवधारण करे, अर्थात् ग्रहण करे। फिर गुरु शिष्य के सिर पर वासक्षेप करते हुए कहे - “तुम्हें वाचनाचार्य-पद प्रदान किया जाता है। वाचना देने, तप करवाने तथा दिशा की अनुज्ञा के विधि-विधान करवाने की मैं अनुमति देता हूँ।" फिर एक बार लघु नंदी का पाठ बोले। लघु नंदी बोलने के बाद अन्त में गुरु पुनः कहे - "इसे पुनः पढ़ाने के लिए, अमुक साधु को वाचनादान आदि की अनुज्ञा एवं नंदीक्रिया होती है।" यह बोलकर गुरु शिष्य के सिर पर वासक्षेप करे। इसके बाद गुरु/आचार्य वर्द्धमान-विद्या द्वारा वासक्षेप चूर्ण को अभिमंत्रित करे तथा उसे साधु-साध्वियों को दे। "अमुक मुनि वाचनाचार्य हुए" - गुरु के साथ सभी यह घोषणा कर वाचनाचार्य के सिर पर वासक्षेप करे। तत्पश्चात् वाचनाचार्य गुरु के साथ समवसरण की तीन प्रदक्षिणा करे। फिर मात्र गुरु समवसरण की तीन प्रदक्षिणा करे। तदनन्तर वाचनाचार्य एक कम्बल पर बैठकर देशना दे। फिर पूरे संघ एवं गच्छ के सामने आचार्य या गुरु कहे - "अमुक वाचनाचार्य को व्रतारोपण कराने, नंदी कराने, योगोद्वहन कराने, वाचना देने, तपोविधान कराने, दिशा (विहार) आदि की अनुज्ञा देने, श्रावकों को व्रतारोपण कराने, आराधना कराने, साधु और श्रावकों के करने योग्य प्रतिष्ठा विधि कराने, शान्तिक एवं पौष्टिक कर्म कराने की अनुज्ञा (अनुमति) देता हूँ।" फिर पदस्थापना के बाद उस वाचनाचार्य को मंत्र की आराधना के लिए वलय से युक्त वर्द्धमान-विद्यापट दे। वाचनाचार्य "इच्छंति" - यह कहकर उस पट्ट को ग्रहण करे। फिर वाचनाचार्य गुरु एवं ज्येष्ठ साधुओं को वन्दन करे। ___ यह वाचनाचार्य-पद प्रदान करने की विधि है। इस अवसर पर उस राज्य के राजा, युवराज, मंत्री, सेनापति एवं श्रेष्ठि श्रावकवर्ग मिलकर महोत्सव करते हैं। सामान्य साधु को गण के नेतृत्व की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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