Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 185
________________ आचारदिनकर (भाग - २) 142 // सत्ताईसवाँ उदय // साध्वी को व्रत प्रदान करने की विधि ( दीक्षा - विधि) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान बीस प्रकार की स्त्रियाँ व्रत प्रदान करने के लिए अयोग्य होती हैं। उनमें से जिन अठारह प्रकार के दोषों से युक्त पुरुष व्रत के लिए अयोग्य कहें गए हैं, उन्हीं अठारह दोषों से युक्त स्त्रियाँ भी अयोग्य होती हैं। इसके अतिरिक्त गर्भिणी और बालवत्सा स्त्री भी दीक्षा (व्रत) प्रदान करने के लिए अयोग्य मानी जाती हैं। इस प्रकार व्रत का उपघात करने वाले स्त्रियों के दोष बीस होते हैं। इन सभी बीस दोषों का परिहार करके स्त्रियों को दीक्षा दें । कुमारी या विवाहित वैराग्य वासित स्त्री द्वारा अपने पति, पुत्र, पिता या बन्धुजनों से अनुज्ञा प्राप्त कर लेने पर दीक्षादाता गुरु बिना किसी अवरोध के उसे दीक्षा दे और साधुवाद दे । जैसा कि आगम में कहा गया है - " माता, पिता की आज्ञा के बिना भी अपने सत्त्व पर दीक्षा की इच्छा रखने वाला पुरुष दीक्षा लेने के लिए स्वतंत्र है, उसे माता-पिता की आज्ञा की अनिवार्यता नहीं होती है, किन्तु स्त्री पिता और पति की आज्ञा के बिना दीक्षा लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है और उसे बिना आज्ञा के दीक्षा देना कल्प्य नहीं है । इस प्रकार पिता, पति आदि से अनुमति प्राप्त स्त्री को ही व्रत प्रदान करे । इसकी सम्पूर्ण दीक्षा - विधि मुनि की दीक्षा - विधि के समान ही है, मात्र गुरु के द्वारा शिखासूत्र का उपनयन और वेशदान नहीं किया जाता है । शिखा सूत्र का उपनयन एवं वेशदान प्रवर्तिनी आदि अन्य साध्वी के हाथ से किया जाता है । शेष क्रिया मुनि की दीक्षा - विधि के समान ही है । आचार्य श्रीवर्धमानसूरि विरचित आचारदिनकर के यतिधर्म के उत्तरायण में साध्वी ( व्रतिनी) को दीक्षा - व्रत प्रदान करने सम्बन्धी यह सत्ताईसवाँ उदय पूर्ण होता है 1 Jain Education International OO For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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