Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 198
________________ २ । 4 आचारदिनकर (भाग-२) 155 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान ___ तीन उत्तरीय वस्त्रों में से दो चादर (सूती) एवं तीसरी ऊनी कामली होती है। रजोहरण को धर्मध्वज एवं मुख को आच्छादित करने वाले वस्त्र को मुखवस्त्रिका कहते हैं। इस प्रकार जिनकल्पी साधुओं की उपधि बारह प्रकार की होती है। यह जिनकल्पी के उपकरण बताए गए हैं। “जिण कप्पिया" गाथा के अनुसार जिनकल्पी भी दो प्रकार के होते हैं - पाणिपात्र (हाथ में भिक्षा ग्रहण करने वाले) और पात्रधर (पात्र में भिक्षा ग्रहण करने वाले)। इन दोनों के भी दो-दो भेद हैं। पाणिपात्र दो प्रकार होते हैं - १. वस्त्रधारी और २. निर्वस्त्र। पाणिपात्र के दो या तीन उपकरण होते हैं। पाणिपात्र निर्वस्त्र जिनकल्पियों के दो उपकरण तथा पाणिपात्र वस्त्रधारी जिनकल्पियों के तीन उपकरण होते हैं। पात्रधर निर्वस्त्र जिनकल्पियों के उपकरण नौ या दस प्रकार के होते हैं। वस्त्रधारी पात्रधर जिनकल्पी की उपधि ग्यारह या बारह प्रकार की होती हैं। जिनकल्पी में भी उपधि के आठ विकल्प होते हैं। "पुत्तीअय" गाथा के अनुसार वे आठ विकल्प इस प्रकार हैंमुखवस्त्रिका और रजोहरण - ऐसी दो प्रकार की उपधि होती • * मुखवस्त्रिका और रजोहरण के साथ एक वस्त्र रखने पर तीन प्रकार की उपधि होती है। प्रथम दो उपधि के साथ दो वस्त्र रखने पर चार प्रकार की उपधि होती है। प्रथम दो उपधि के साथ तीन वस्त्र रखने पर पाँच प्रकार की उपधि होती है। प्रथम दो उपधि के साथ सात प्रकार के पात्र-निर्योग (उपधि) रखने पर नौ प्रकार की उपधि होती है। मुखवस्त्रिका, रजोहरण तथा एक वस्त्ररूप तीन प्रकार की उपधि के साथ सात प्रकार के पात्र-निर्योग (उपधि) रखने पर दस प्रकार की उपधि होती है। * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238