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आचारदिनकर (भाग - २)
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१. अवग्रहानन्तक
२. पट्टक
३. अर्धोरुक
७. कंचुक ८. उपकक्षिका
स्कंधकरणी
साध्वियों के अन्य उपकरण ४. चलनिका ५. अभ्यंतरनिर्वसनी ६. बहिर्निर्वसनी ६. वैकक्षिका १०. संघाटी एवं ११. इस प्रकार कुल मिलाकर साध्वियों के २५ उपकरण हैं। साध्वियों के उपकरणों की उपयोगिता निम्न कारण से है गुप्तांग की रक्षा हेतु नौका के आकारवाला, शरीर-परिमाण वस्त्र अवग्रहानन्तक कहलाता है । इसका वस्त्र मोटा व कोमल होना चाहिए । । चार अंगुल चौड़ा, कमर - परिमाण वस्त्र पट्टक है अवग्रहानन्तक के दोनों छोरों को ढंकने के लिए यह आवश्यक है । अवग्रहानन्तक एवं कमरपट्ट बाँधने के पश्चात् मल्ल के कच्छे की तरह दिखाई देते हैं ।
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
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अवग्रहानन्तक एवं कमरपट्ट सहित कटिभाग को ढंकनेवाला जंघा तक लंबा वस्त्र अर्धोरुक है। ऐसा ही बिना सिला हुआ घुटनों तक का वस्त्र चलनिका कहलाता है । यह वस्त्र नर्तकी के लहंगे जैसा होता है । कमर से लेकर पैर की पिंडली तक लंबा व नीचे से कसा हुआ वस्त्र अन्तर्निर्वसनी है । ऐसे ही वस्त्र पर टखनों तक लंबा एवं नीचे से खुला और कटिभाग में डोरे से बँधा हुआ वस्त्र बहिर्निर्वसनी है । बिना सिला हुआ, शिथिल तथा स्तनों को ढंकने वाला कंचुक है । इसी तरह दाहिनी ओर पहना जाने वाला वस्त्र उपकक्षिका पट्ट, कंचुक एवं उपकक्षिका को ढंकने वाला वस्त्र वैकक्षिका है। संघाटिका ( चादर ) के चार भेद हैं । उपाश्रय में ओढ़ने की एक हाथ की एक चादर, तीन हाथ की दो चादर होती हैं, जो गोचरी जाते समय तथा स्थंडिलभूमि जाते समय ओढ़ी जाती है । चौथी चार हाथ की चादर समवसरण आदि में जाते समय ओढ़ी जाती है, क्योंकि समवसरण में साध्वियों को बैठना नहीं होता है। चादर कोमल वस्त्र की बनी हुई होनी चाहिए ।
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स्कंधकरणी चार हाथ विस्तृत होती है । यह वायुजन्य पीड़ा से रक्षा करने में उपयोगी है, साथ ही रूपवती की शीलरक्षा के लिए उसे कुब्जा दिखाने में भी यह उपयोगी है, अतः इसे खुब्जकरणी भी कहते
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