Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 218
________________ आचारदिनकर (भाग-२) 175 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान तत्काल योगिनी कहते है। सूर्योदय से लेकर रात्रिपर्यन्त आठ-आठ अर्द्ध प्रहरों में पूर्वादिक दिशाओं में भ्रमण करता हुआ राहु यात्रा के समय सामने या दाहिनी ओर आए, तो उसका त्याग करे। यात्रा के समय राहु दाहिनी ओर तथा पीछे की तरफ, योगिनी बाईं ओर तथा पीछे की तरफ एवं चंद्रमा सम्मुख हो, तो वह व्यक्ति जय को प्राप्त करता है। चंद्रमा में मेष आदि बारह राशियों में पूर्वादि चारों दिशाओं में पूर्व, दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर के अनुक्रम से विचरण करता है। यात्रा के समय चंद्रमा यदि सम्मुख हो, तो अतीव श्रेष्ठ फल प्रदान करता हैं। चंद्रस्वर (शशिप्रवाह) में गमन शुभ (प्रशस्त) है तथा सूर्यस्वर (सूर्य के प्रवाह) में कभी भी शुभ नहीं होता है। सूर्य रात्रि के अन्तिम प्रहर से दो-दो प्रहरों तक पूर्वादि चारों दिशाओं में विचरण करता है। इसके दाहिनी बाजू रहते यात्रा, बाई बाजू रहते प्रवेश एवं पीठ पीछे रहते दोनों (यात्रा और प्रवेश) सुखदायी होते हैं। प्रतिपदा से आरम्भ करके प्रतिदिन सम्मुखस्थ दिशा में उसका पाशकाल होता है। पूर्व दिशा से, शुक्ल प्रतिपदा से लेकर क्रम से मास पर्यन्त तक यह पाशकाल होता है। - कन्या, तुला और वृश्चिक संक्रान्ति में पूर्व दिशा में, कुंभ, भकर और धनु संक्रान्ति में दक्षिण दिशा में; मीन, मेष और वृषभ संक्रान्ति में पश्चिम दिशा में एवं मिथुन, कर्क और सिंह संक्रान्ति में उत्तर दिशा में वत्स होता है। प्रयाण, चैत्यादि द्वारस्थापन में, पूजा आदि तथा प्रवेश में सम्मुख एवं पृष्ठ का वत्स अशुभ कहा गया है। शुक्र जिस दिशा में उदित हो, भ्रमणवश जिस दिशा में जाए और जिन दिग्द्वार नक्षत्रों पर हो, उस दिशा की ओर यात्रा करने वाले के लिए शुक्र-सम्मुखत्व होता है। यह सम्मुखत्व भी तीन प्रकार का है। यदि शुक्र सम्मुख हो, तो वह नेत्र को हानि पहुंचाता है, दाहिनी ओर हो, तो अशुभफलदायी होता है, किन्तु पीठ पीछे और बाईं ओर का शुक्र सर्व सुखदायी होता है। उपर्युक्त श्लोकों में कहे गए अनुसार तिथि, वार, लग्न, नक्षत्र, चन्द्रबल एवं ताराबल को देखकर अनुकूल शकुन होने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238