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आचारदिनकर (भाग-२) 108 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छः बार करे।
इसी प्रकार छत्तीसवें दिन से लेकर बयालीसवें दिन तक आयम्बिल एवं कालग्रहण के द्वारा पाँचवें उद्देशक से लेकर अठारहवें उद्देशक तक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। प्रतिदिन क्रमशः दो-दो उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
तेंतालीसवें दिन :- तेंतालीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा उन्नीसवें एवं बीसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसके साथ ही आठवें अध्ययन के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे।
चवालीसवें दिन :- चवालीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
पैंतालीसवें दिन :- पैंतालीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
इस प्रकार महानिशीथ श्रुतस्कन्ध के योग में कुल पैंतालीस दिन एवं एक नंदी होती है। यह कालिक आगाढ़ योग है। यहाँ पैंतालीस आयम्बिल आयुक्त पानक के द्वारा करते है। इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है - महानिशीथ श्रुतस्कंध के आठ अध्ययनों के योग : काल=४५, दिन=४५,
आयम्बिल ४५, नंदी २ | काल | १ | २ ३ | ४ ५ ६ ७ | | ६ | अध्य- | श्रु.उ. २ २ २ २ २ ३ ३ । ३ ।
यन नं.१ | उ. ० १/२ ३/४/५/६ ७/८ | १/२ | ३/४ ५/६ | काउ. ४ । ७ । ६ । ६ । ६ ५ ७ । ६ । ६ ।
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