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आचारदिनकर (भाग-२) 110 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान योगोद्वहन की चर्या पूर्व में कहे गए शेष सूत्रों के योगोद्वहन की चर्या के समान ही है। इसके योगोद्वहन की विधि निम्नानुसार है :
प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम शतक के उद्देश की क्रिया करे। इसके साथ ही प्रथम शतक के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही आठ बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, आठ बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, आठ बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे एवं आठ बार कायोत्सर्ग करे।
इसी प्रकार द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ दिन कालग्रहण एवं क्रमशः आयम्बिल तथा नीवि द्वारा प्रथम शतक के तृतीय उद्देशक से । दो-दो उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे।
पाँचवें दिन :- पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा नवें और दसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसके साथ ही प्रथम शतक के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे।
छटें दिन :- छटे दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय शतक के उद्देश की क्रिया करे। इसके साथ ही द्वितीय शतक के स्कन्ध नामक प्रथम उद्देशक के उद्देश एवं समुद्देश की क्रिया करे। यदि उस दिन योगवाही स्कन्ध उद्देशक को मुखाग्र न करे, तो उसे उस दिन उसकी अनुज्ञा न दे। दूसरे दिन मुखाग्र करने पर आयम्बिल-तप के द्वारा उसकी अनुज्ञा दे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। ..
सातवें दिन :- सातवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा स्कन्ध उद्देशक के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
आठवें दिन :- आठवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश
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