Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 162
________________ आचारदिनकर (भाग-२) 119 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान उपशतक हैं, उसके आदि के छासठ एवं अन्त के छासठ - ऐसे एक सौ बत्तीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। तिहत्तरवें दिन :- तिहत्तरवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा उनचालीसवें असंज्ञिपंचेन्द्रिशतक जिसमें बारह उपशतक हैं, उसके आदि के छासठ एवं अन्त के छासठ - ऐसे एक सौ बत्तीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। चौहत्तरवें दिन :- चौहत्तरवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा चालीसवें संज्ञिपंचेन्द्रिय महाज्योत्स्ना शतक, जिसमें बारह उपशतक हैं, उसके आदि के एक सौ सोलह एवं अन्त के एक सौ पन्द्रह - ऐसे दो सौ एकत्तीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। पचहत्तरवें दिन :- पचहत्तरवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा इकतालीसवें राशिज्योत्स्नाशतक के आदि के अट्ठानवें एवं अन्त के अट्ठानवें - ऐसे एक सौ छानवें उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। छिहत्तरवें दिन :- छिहत्तरवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा भगवतीसूत्र के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। सतहत्तरवें दिन :- सतहत्तरवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा भगवतीसूत्र के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। ये संग्रहणी की गाथाएँ हैं, जिनका भावार्थ निम्नानुसार है - भगवतीसूत्र के प्रथम से लेकर आठवें शतक तक प्रत्येक शतक में दस-दस उद्देशक हैं। नवें और दसवें शतक में चौंतीस-चौंतीस उद्देशक हैं। ग्यारहवें शतक में बारह उद्देशक हैं। फिर एक का क्रियाविधि मदिन :- सतहकर तथा भापूर्ववत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238