________________
आचारदिनकर (भाग-२) 17 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
सत्तावनवें दिन :- सत्तावनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा तेईसवें शतक के आदि के पच्चीस एवं अन्त के पच्चीस - ऐसे पचास उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
अट्ठावनवें दिन :- अट्ठावनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा चौबीसवें शतक के आदि के बारह एवं अन्त के बारह - ऐसे चौबीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
उनसठवें दिन :- उनसठवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा पच्चीसवें शतक के आदि के छः एवं अन्त के छ: - ऐसे बारह उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
साठ से लेकर चौसठवें दिन तक पाँच काल का ग्रहण करे। छब्बीसवें बन्धिशतक, सत्ताईसवें करांशुकशतक, अट्ठाईसवें कर्मसमार्जनशतक, उनतीसवें कर्मप्रस्थापनशतक तथा तीसवें समवसरणशतक - इन पाँचों शतकों में जो ग्यारह-ग्यारह उद्देशक हैं, उन उद्देशकों के दो भाग करके उनके उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा का क्रिया करे, अर्थात् आदि में छ:-छः उद्देशकों की तथा अन्त में पाँच-पाँच उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
पैंसठवें दिन :- पैंसठवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा एकतीसवें उपपातशतक के आदि के चौदह एवं अन्त के चौदह - ऐसे अट्ठाईस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
छासठवें दिन :- छासठवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा बत्तीसवें उद्वर्तनशतक के आदि के चौदह एवं अन्त के चौदह - ऐसे अट्ठाईस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org