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आचारदिनकर (भाग-२)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान उपशतक हैं, उसके आदि के छासठ एवं अन्त के छासठ - ऐसे एक सौ बत्तीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
तिहत्तरवें दिन :- तिहत्तरवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा उनचालीसवें असंज्ञिपंचेन्द्रिशतक जिसमें बारह उपशतक हैं, उसके आदि के छासठ एवं अन्त के छासठ - ऐसे एक सौ बत्तीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
चौहत्तरवें दिन :- चौहत्तरवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा चालीसवें संज्ञिपंचेन्द्रिय महाज्योत्स्ना शतक, जिसमें बारह उपशतक हैं, उसके आदि के एक सौ सोलह एवं अन्त के एक सौ पन्द्रह - ऐसे दो सौ एकत्तीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
पचहत्तरवें दिन :- पचहत्तरवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा इकतालीसवें राशिज्योत्स्नाशतक के आदि के अट्ठानवें एवं अन्त के अट्ठानवें - ऐसे एक सौ छानवें उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
छिहत्तरवें दिन :- छिहत्तरवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा भगवतीसूत्र के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
सतहत्तरवें दिन :- सतहत्तरवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा भगवतीसूत्र के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
ये संग्रहणी की गाथाएँ हैं, जिनका भावार्थ निम्नानुसार है -
भगवतीसूत्र के प्रथम से लेकर आठवें शतक तक प्रत्येक शतक में दस-दस उद्देशक हैं। नवें और दसवें शतक में चौंतीस-चौंतीस उद्देशक हैं। ग्यारहवें शतक में बारह उद्देशक हैं। फिर
एक का क्रियाविधि मदिन :- सतहकर तथा भापूर्ववत् ।
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