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आचारदिनकर (भाग-२)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे।
तीसवें दिन :- तीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की तथा छटें अध्ययन के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे।
एकतीसवें दिन :- एकतीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें अध्ययन के उद्देश की क्रिया करे। इसके साथ ही उसके प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे।
बत्तीसवें दिन :- बत्तीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही . पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
तेंतीसवें दिन :- तेंतीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें और छठे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की तथा सातवें अध्ययन के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे।
चौंतिसवें दिन :- चौतिसवें दिन योगवाही आयम्बिा -तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आठवें अध्ययन के उद्देश की क्रिया . करे। इसके साथ ही इसके प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही । पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे।
पैंतीसवें दिन :- पैंतीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश,
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