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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 107 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे। तीसवें दिन :- तीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की तथा छटें अध्ययन के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे। एकतीसवें दिन :- एकतीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें अध्ययन के उद्देश की क्रिया करे। इसके साथ ही उसके प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे। बत्तीसवें दिन :- बत्तीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही . पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। तेंतीसवें दिन :- तेंतीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें और छठे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की तथा सातवें अध्ययन के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। चौंतिसवें दिन :- चौतिसवें दिन योगवाही आयम्बिा -तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आठवें अध्ययन के उद्देश की क्रिया . करे। इसके साथ ही इसके प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही । पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे। पैंतीसवें दिन :- पैंतीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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