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आचारदिनकर (भाग-२) 93 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
बारहवें दिन :- बारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा अन्तकृतदशांग सूत्र के अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। . . इस प्रकार अन्तकृतदशांगसूत्र के योग में कुल दिन बारह तथा तीन नंदी होती हैं। यह आगाढ़ योग है, इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है :
अंतगडदशांग श्रुतस्कंध के योग में दिन-१२, कालग्रहण-१२, नंदी-३,
. आगाढ़ काल वर्ग अं.उ.नं.श्रु.
उ.व.-१ अध्ययन आ.-५, | आ.-४, | आ.-७, आ.-५, | आ.-५, आ.-८,
अं.-५ | अं.-४ | अं.-६ | अं.-५ | अं.-५ | अं.-८ काउसग्ग ११
काल
वर्ग अध्ययन |
११ । १२ . अं.स. | अं.अ.नं.
७ | आ.-७, अं.-६ |
६ |
८ ६ । १० ।
८ | श्रु.स. | श्रु.अ.नं. | आ.-५, अं.-५ ६ | १
काउसग्ग
१
अब अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र के योगोद्वहन की विधि वर्णित है। अनुत्तरोपपातिक- दशांग में एक. श्रुतस्कन्ध एवं तीन वर्ग है। तीनों वर्ग में क्रमशः दस, तेरह एवं दस अध्ययन हैं। इस सूत्र के योगोद्वहन
की विधि निम्नानुसार है :- प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया
एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया अनुत्तरोपपातिकदशांग, · श्रुतस्कन्ध तथा उसके प्रथम वर्ग के वांचन के उद्देश्य से की जाती है।
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