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आचारदिनकर (भाग - २)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
आठवें दिन :- आठवें दिन योगवाही नीवि तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पन्द्रहवें और सोलहवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
नवें दिन :- नवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा अठारहवें एवं उन्नीसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
दसवें दिन :- दसवें दिन योगवाही नीवि तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा उन्नीसवें एवं बीसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे तथा इसके साथ ही निशीथ के समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि भी करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे ।
ग्यारहवें दिन :- ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे । बारहवें दिन :- बारहवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध की नंदीक्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे ।
इस प्रकार निशीथसूत्र के योगोद्वहन में बारह दिन एवं एक नंदी होती है । यह कालिक आगाढ़ योग है । इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है
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निशीथसूत्र योग में :- काल - १२, दिन- १२, नंदी-१
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