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आचारदिनकर (भाग-२)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान __ग्यारहवें दिन :- ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे।
बारहवें दिन :- बारहवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ज्ञाताधर्मकथा के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
तेरहवें दिन :- तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ज्ञाताधर्मकथा के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
इस प्रकार ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के योग तेरह दिन से पूरे होते हैं। द्वितीय श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास इस प्रकार है:ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कंध के योग में :- काल-१३, दिन-१३
एवं नंदी-३ - अनागाढ़ काल । १
२ । ३ । | ४ - ५ द्वि.श्रु.उ.नं. १ २ अध्ययन आ.-५, आ.-५, | आ.-२७, | आ.-२७, | आ.-१६, अं.-५ अं.-५ । अं.-२७ अं.-२७ । अ.-१६
E E
वर्ग
काउसग्ग
E
।
usual
१० १० आ.-४, अ.-४
आ.-४, अं.-४
काल वर्ग अध्ययन आ.-१६, । आ.-२, आ.-२,
अं.-१६ अं.-२ | अं.-२ काउसग्ग ६६६ काल ११
१२ वर्ग | द्वि. श्रु. स. अ. नं. अं. स. अध्ययन ०
०
१३
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अं. अ. न.
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