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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 89 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान __ग्यारहवें दिन :- ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे। बारहवें दिन :- बारहवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ज्ञाताधर्मकथा के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। तेरहवें दिन :- तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ज्ञाताधर्मकथा के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। इस प्रकार ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के योग तेरह दिन से पूरे होते हैं। द्वितीय श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास इस प्रकार है:ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कंध के योग में :- काल-१३, दिन-१३ एवं नंदी-३ - अनागाढ़ काल । १ २ । ३ । | ४ - ५ द्वि.श्रु.उ.नं. १ २ अध्ययन आ.-५, आ.-५, | आ.-२७, | आ.-२७, | आ.-१६, अं.-५ अं.-५ । अं.-२७ अं.-२७ । अ.-१६ E E वर्ग काउसग्ग E । usual १० १० आ.-४, अ.-४ आ.-४, अं.-४ काल वर्ग अध्ययन आ.-१६, । आ.-२, आ.-२, अं.-१६ अं.-२ | अं.-२ काउसग्ग ६६६ काल ११ १२ वर्ग | द्वि. श्रु. स. अ. नं. अं. स. अध्ययन ० ० १३ - अं. अ. न. | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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