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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
आचारदिनकर (भाग-२) । काउसग्ग
इस प्रकार ज्ञाताधर्मकथा के दोनों श्रुतस्कन्धों के योगों में कुल दिन-तैंतीस एवं नंदी-पाँच होती हैं। यह कालिक अनागाढ़ योग है।
अब उपासकदशांगसूत्र के योगोद्वहन की विधि उल्लिखित है। उपासकदशांग में एक श्रुतस्कन्ध और दस अध्ययन हैं। इसके योग
में:
प्रथम दिन :- योगवाही नंदीक्रिया, आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया उपासकदशांग तथा उसके श्रुतस्कन्ध के वाचना के उद्देश्य से की जाती है, इसके साथ ही योगवाही प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पाँच बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, पाँच बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, पाँच बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे एवं पाँच बार कायोत्सर्ग करे।
द्वितीय दिन :- योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
इस प्रकार तृतीय दिन से लेकर दस दिनों तक कालग्रहण एवं 'आयम्बिल तथा नीवि द्वारा तृतीय अध्ययन से लेकर दस अध्ययनों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे तथा प्रत्येक दिन योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
___ग्यारहवें दिन :- ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
बारहवें दिन :- बारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
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