SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान तेरहवें दिन :- तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा उपासकदशांग के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। चौदहवें दिन :- चौदहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा उपासकदशांग के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। इस प्रकार उपासकदशांग के योग में कुल चौदह दिन एवं तीन बार नंदीक्रिया होती है। यह कालिक अनागाढ़ योग है। इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है : उपासकदशांग श्रुतस्कन्ध के योग में :- काल-१४, दिन-१४, नंदी-३, | अनागाढ़ काल अध्ययन | अ.उ.नं.१ श्रु.उ.अ. | २ | ३ ४ ५ ६ ७ | ८ ६ | له | لسة | لبه काउसग्ग ११ ___ काल | अध्ययन काउसग्ग १० १० ३ १२ श्रु.अ.नं. १३ अं.स. १४ । अं.अं.नं. अब अन्तकृतदशांगसूत्र के योगोद्वहन की विधि वर्णित हैं। अन्तकृतदशांग में एक ही श्रुतस्केन्ध हैं। उसके आठ वर्ग हैं। उन । आठ वर्गों में क्रमशः दस, आठ, तेरह, दस, दस, सोलह, तेरह एवं . दस अध्ययन हैं। इस सूत्र के योगोद्वहन की विधि निम्नांकित है - प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया अन्तकृतदशांग, उसके श्रुतस्कन्ध एवं उसके प्रथम वर्ग के वांचन के उद्देश्य से की जाती है। पुनः यहाँ प्रथम वर्ग तथा उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दसों अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करे। तत्पश्चात् प्रथम वर्ग तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy