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आचारदिनकर (भाग-२)
92 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दसों अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करे। पुनः प्रथम वर्ग तथा उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दसों अध्ययनों के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही ग्यारह बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, ग्यारह बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, ग्यारह बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे एवं ग्यारह बार कायोत्सर्ग करे।
द्वितीय दिन :- दूसरे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया द्वितीय वर्ग तथा उसके आदि के चार एवं अन्त तक के चार - ऐसे आठ अध्ययनों के वांचन के उद्देश्य से की जाती है। पुनः यहाँ द्वितीय वर्ग तथा उसके आदि के चार एवं अन्त के चार - ऐसे आठ अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करे। तत्पश्चात् द्वितीय वर्ग तथा उसके आदि के चार और अन्त के चार - ऐसे
आठ अध्ययनों के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
इस प्रकार तृतीय दिन से लेकर आठ दिनों तक कालग्रहण एवं क्रमशः आयम्बिल, नीवि द्वारा तृतीय वर्ग से लेकर आठों वर्गों तथा उनके अध्ययनों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।।
नवें दिन :- नवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा अन्तकृतदशांग के श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार
करे।
दसवें दिन :- दसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा अन्तकृतदशांग के श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
ग्यारहवें दिन :- ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक. काल का ग्रहण करे तथा अन्तकृतदशांग के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
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