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आचारदिनकर (भाग-२) काउसग्ग ५
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान ६ ६ ६ ४
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काल | १० ११ १२ १३ १४ १५ । १६ । १७ १८ । अध्ययन | ६ | ७ | ८ | ६ | १० | श्रु. | श्रु.अ. | अं.स. | अं.अ.
। नं. उद्देशक | ० ० ० ० ० ० | काउसग्ग | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ | १ |
नं.
अब समवायांग के योगोद्वहन की विधि वर्णित है :
प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा समवायांगसूत्र के उद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
द्वितीय दिन :- द्वितीय दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा समवायांगसूत्र के समुद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
तृतीय दिन :- तृतीय दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा समवायांगसूत्र के अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
इस प्रकार समवायांगसूत्र के योगोद्वहन में कुल तीन दिन तथा दो नंदी होती हैं। यह कालिक आगाढ़ योग है। समवायांग के यंत्र का न्यास इस प्रकार है :
समवायांग (अंग-४), योगोद्वहन में काल-३, दिन-३,
नंदी-२ दिन | अं.उ.न.आं. | अं.स.आं. | अं.अ.नं.आ. काल १ २
३ काउसग्ग । १ । १
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