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________________ 82 आचारदिनकर (भाग-२) काउसग्ग ५ जैनमुनि जीवन के विधि-विधान ६ ६ ६ ४ ६ ६ ६ ६ काल | १० ११ १२ १३ १४ १५ । १६ । १७ १८ । अध्ययन | ६ | ७ | ८ | ६ | १० | श्रु. | श्रु.अ. | अं.स. | अं.अ. । नं. उद्देशक | ० ० ० ० ० ० | काउसग्ग | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ | १ | नं. अब समवायांग के योगोद्वहन की विधि वर्णित है : प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा समवायांगसूत्र के उद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। द्वितीय दिन :- द्वितीय दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा समवायांगसूत्र के समुद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। तृतीय दिन :- तृतीय दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा समवायांगसूत्र के अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। इस प्रकार समवायांगसूत्र के योगोद्वहन में कुल तीन दिन तथा दो नंदी होती हैं। यह कालिक आगाढ़ योग है। समवायांग के यंत्र का न्यास इस प्रकार है : समवायांग (अंग-४), योगोद्वहन में काल-३, दिन-३, नंदी-२ दिन | अं.उ.न.आं. | अं.स.आं. | अं.अ.नं.आ. काल १ २ ३ काउसग्ग । १ । १ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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