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________________ 81 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। चौदहवें दिन :- चौदहवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा दसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। पन्द्रहवें दिन :- पन्द्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। सोलहवें दिन :- सोलहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की नंदीविधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। सत्रहवें दिन :- सत्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा स्थानांगसूत्र के समुद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। अठारहवें दिन :- अठारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा स्थानांगसूत्र के अनुज्ञा की नंदीविधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। इस प्रकार स्थानांगसूत्र के योगोद्वहन में कुल अठारह दिन एवं तीन नंदी होती हैं। यह कालिक अनागाढ़ योग है। स्थानांगसूत्र के यंत्र का न्यास इस प्रकार है : | ठाणांग श्रुतस्कन्ध-१, काल-१८, दिन-१८, नंदी-३ (तीसरा अंग) । काल Kh अध्ययन अं.उ. म. उद्देशक ० १/२ | ३/४ | १/२ | ३/४ | १/२ ३/४ १/२ | ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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